மகாத்மா காந்தியின் சிந்தனைகள்

You are here

  • करना है ईश्वरका कम लेकिन वह हम कैसे जाने ।

    नई दिल्ली बुध, २ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • ईश्वरका कम जाने [जानने] का साधन है हार्दिक प्रार्थना और तदनुसार कम ।

    गुरु, ३ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • श्रद्धा ही जिंदगीका सूरज है ।

    शुक्र, ४ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • इनसान तुझे फेंकता है उसे [उससे] क्या, अगर खु[दा] तुझे रखना चाहता है ।

    शनि, ५ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • अगर एक आदमी भी संपूर्ण हो सकता है तो सब हो सकते है ऐसे मानना ही न्याय है ।

    रवि, ६ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • कैसी दुःखकी बात है कि मनुष्य जानता है तो भी गिरना पसंद करता है?

    सोम, ७ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • हम बड़ी बातोंको न सोचें, अच्छी सोचें ।

    ८९ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • अगर लोग हमको स्वप्नाव्स्थित समजें तो क्या हूआ?

    ९ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
  • १२५ वर्ष तक जीने का संभव कम होता जाता है । राग और क्रोधपर काफी जित न मिले उनको जीने का हक कैसे?

    १० अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५
GoUp