Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • हमारे हृदयकी गद्दीपर खुदा बैठे और शैतान भी, नहीं हो सकता ।

    नई दिल्ली गुरु, १२ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • धर्म के लिये मरना अच्य्ह्चा है, धर्मधताके लिये न जीना न म[र]ना ।

    नई दिल्ली शुक्र, १३ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • प्रार्थनासे आंतरिक शक्ति बढ़ती है ।

    नई दिल्ली शनी, १४ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • भीतरका सौन्द्र्यदेखो तो बाहरका फीका लगेगा ।

    नई दिल्ली रवी, १५ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • जो जीवन सेवामें व्यतीत होता है वही फलदायी है ।

    नई दिल्ली सोम, १६ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • खुबीकी बात है कि हम बाहरकी बातके बारेमें बड़ा परिश्रम करते हैं, अंतरके लिये कुछ ख्याल तक नहीं ।

    नई दिल्ली मंगल, १७ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • अगर हम दुःखले समय भी ईश्वरकी हाजरीको पहचान सके तो हमारे लिये खेर है ।

    नई दिल्ली बुध, १८ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • आत्माका दर्शन जितना होता है इतना ही मनुष्य आगे बढ़ता है ।

    नई दिल्ली गुरु, १९ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • जैसे अक[एक] फोडा भी आदमीको तंग करता है उससे भी बदरतर उद्विन्गता है ।

    नई दिल्ली शुक्र, २० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४
  • कहा जाता है भूखका दुःख बड़ा है हम है हम अगर इनसान रहना चाहे तो उस दुःखको भी भूलें ।

    नई दिल्ली शनी, २१ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४
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