कई चीज आदमी बोलकर करता है, कई मौनसे और कई कार्यसे । सबमें ज्ञान है तो कार्य ही है ।
- ३१ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८When a mans mind is filled with the Light of Heaven, all obstacles in his path vanish.
- June 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.हम किसीसे भी बहतर नहीं हैं-इस विचारमें सत्य भरा है, नम्रता है ।
- १२ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९જે ત્યાગ દિલથી નથી થતો, તે કાયમ નથી રહેતો.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૫, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧અનાસક્તિની પરાકાષ્ઠા ગીતા ની મુક્તિ છે. અને તે જ અર્થ આપણે ઇશોપનિષદના પહેલા મંત્રમાં જોવા પામીએ છીએ.
- ડિસેમ્બર ૨૨, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૮भक्त भगवानमें लींन होता है
- नवेम्बर १६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७मनुष्यके भीतर ही गंगा पड़ी है उसमें स्नान नहीं कर पाटा और कोरा रहता है ।
- सेवाग्राम शुक्र, २३ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१The wonder is that even though a man knows where true happiness lies, he wastes his life in pursuing untruth!
- July 18, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.धर्म पलने कहने न कहने से नहीं होता लेकिन ईश्वरको अंतरसे और अंतरमें पहचानने से ही होता है ।
- २६ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३અનાસક્તિની સાથે અનિયમિતતાનો મેલ ક્યારેય બેસતો નથી.
- નવેમ્બર ૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬बगैर आदर्शकि मेहनत निष्फल है, जैसे बगैर दिशा या बदर [बंदर] का जहाज निष्फल घूमता है ।
- २२ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८The real service to the Bhils would be to make them fearless and remove their despair.
- Wednesday, August 28, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.लोगकी निंदासे जो डरता है वह महत्वका काम नहीं कर सकेगा ।
- सेवाग्राम रवि, १८ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१One mans cruelty is the measure of another mans gentleness.
- April 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.What greater meanness can there be than to seek out our good points and praise them to others?
- October 14, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.સાચા ભક્તને માટે કશું પણ અશક્ય નથી.
- નવેમ્બર ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭To be guilty of a lapse, small or big, is certainly bad; but to hide it is even worse.
- March 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.To speak or not to speak—when that is the question, silence should take the place of speech.
- October 25, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.That being so, why is man happy or miserable?
- January 12, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 426.મીરાંબાઈના જીવનમાંથી આપણે મોટી વાત એ શીખીએ છીએ કે તેણે ભગવાનને ખાતર સર્વસ્વનો ત્યાગ કર્યો - પતિનો સુધ્ધાં.
- ડિસેમ્બર ૫, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭इससे उलटा निरभिमान अथवा नम्रता आदमीको पोषण देता है, और बड़ाता है ।
- १९ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८कामनाको संतुष्ट नहीँ करना अच्छा है लेकिन शुभ करने के बाद उसे रोकना असंभव नहीँ तो कठिन तो है ही
- जनवरी २७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१मनुष्य मौतके मुँहमें पड़ा है । मौतका मुंह बंध पड़ने पर मरा हूआ कहा जाता है ।
- लिखा पूनामें, ट्रेनमें २९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२Knowing that everything has two sides, let us look at the bright side alone.
- June 16, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.When the ego dies, the soul awakes.
- March 29, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.Without selflessness, how can there be fearlessness?
- February 16, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.मुझे तो ईश्वरके बारेमें हर घड़ी प्रतीति होती है । फिर किसीसे डरना क्या?
- २९ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३जो मनुष्य दूसरोंकि ऐब निकालता है वह अपनी नहीं देख सकता ।
- १७ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०When God is enshrined in our hearts, we cannot harbour evil thoughts or do evil deeds.
- June 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.મનુષ્યના ખરા છ દુશ્મનો છે: કામ, ક્રોધ, મોહ, મદ, મત્સર, શોક. તેમને જીતવાથી બીજા દુશ્મનોને જીતવું સહેલું બની જાય છે.
- નવેમ્બર ૨૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭रामनाम उसीको मदद देता है जो रामनाम लेने की शर्त[का] पालन करता है ।
- दिल्ली ८ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५શ્રદ્ધાથી માણસ શું નથી કરી શકતો? બધું જ કરી શકે છે.
- ડિસેમ્બર ૬, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭The contentment that accrues to man as a result of leading a regular life, promotes his health and longevity.
- May 17, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.आदर्शका ध्यान करने से उसकी विशालता नहीं बढ़ती है लेकिन गहराई अवश्य बढ़ती है ।
- सेवाग्राम १३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०He who wishes to preserve his integrity must be prepared to lose all material possessions.
- December 14, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.Nanak says : The more one indulges oneself, the more unhappy one becomes.
- August 13, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 456.मौतसे जितने लोग मरते हैं, उससे फिकरसे अधिक मरते हैं ।
- दिल्ली १५ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३७In egotism lies all trouble.
- Monday, September 23, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.जीवन गुलाबका बिछाना नहीं है, काँटोंसे भरा हुआ है ।
- नयी दिल्ली ९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१I am a humble but very earnest seeker after truth.
- "Truth is One, Young India, April 21, 1927", CWMG, vol. XXXIII, p. 246.Why is it that man is afraid of speaking and practising truth, not untruth?
- May 10, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.मूलको छोड़कर जो डाल खोजता है, वह भटकता है ।
- ८ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३अशक्य दीखता है वह अशक्य है ही ऐसा हमेशा नहीं है ।
- २१ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७Man has to do Gods work, but how is he to know what that is?
- Wednesday, October 2, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.जो मनुष्यका मन जानबुझकर गंदा रहता है, उसके लिये अगर कुछ है तो रामनाम ही है ।
- मद्रासके नजदीक पहुँचते हुए ट्रेनमें २१ जनवरी, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५७Contemplation of an ideal does not broaden its scope, but it certainly increases its depth.
- February 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.Nothing is impossible for a true devotee.
- November 15, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.Isaiah, XLI. 10 has : Fear thou not; for I am with thee.
- March 3, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 432.He who is absorbed in God cannot become absorbed in anybody or anything besides Him.
- November 17, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.धर्म पालनमें से जो अधिकार निकलता है वही स्थिर रहता है
- दिसम्बर १८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०आवाज करने से आवाज नहीं मिटती है, चुपकीसे मिटती है ।
- ६ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९Every moment I observe how man deceives himself.
- May 31, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 434.When God cares, why should we be full of cares?
- April 14, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.Religion does not consist in eating this food or eschewing that but only in the realization of God within oneself.
- October 26, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.God is our Help as well as the Helmsman.
- April 12, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 416.जो आदमी सबकी पगधुली होता है वह ईश्वरके नजदीक है ।
- १० जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४जो ईश्वरकी हस्तिके बारेमें शंका करता है उसका नाश होता है ।
- ७ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८मनुष्य जीवन और पशु जीवनमे फरक क्या है इसका संपूर्ण विचार करने से हमारी काफी मुसीबतें हल होती है
- जनवरी १८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३If we are late for a train, we miss it. What if we are late for prayer?
- June 6, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.जो मनुष्य यह मेरा और वह तेरा मानता है, वह अनासक्त नहीं हो सकता है
- सोदपुर जनवरी १८, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२जो अपनेको नहीं पहचानता है वह नष्ट होता है ।
- नई दिल्ली ३ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२If the nature is evil, it needs not repression but casting out.
- July 23, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.It may be possible to gild pure gold, but who can make his mother more beautiful?
- "The National Flag, Harijanbandhu, August 3, 1947", CWMG, vol. LXXXVIII, p. 438.Rather perish than break the pledged word. —Tulsidas
- October 6, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.आपखुदीमें सब मुसीबत भरी है ।
- नई दिल्ली सोम, २३ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४જે અંતરમાં ખરેખર સ્વચ્છ છે તે બહાર અસ્વચ્છ હોઈ જ ન શકે.
- જાન્યુઆરી ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨સત્યનાં દર્શન અહિંસા વગર થઇ નથી શકતાં એટલા માટે કહ્યું છે કે अहिंसा परमो धर्म:
- નવેમ્બર ૨૧, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૫સમુદ્ર બિંદુઓનો બનેલો છે, એનું કારણ એ છે કે બિંદુઓમાં સંપૂર્ણ સહકાર છે. આ જ વાત માણસોને લાગુ પડે છે.
- જૂન ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૫How is it that a precept regarded as applicable to others appears inapplicable to oneself?
- April 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.घमंडीको प्रकाश मिल ही नहीं सकता ।
- नई दिल्ली शुक्र, ३० अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२How can that be religion which cannot be put to use in ones daily life?
- October 4, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.जब बुद्धि और श्रद्धाके बिचमें भेद है तब श्रद्धाको मान देना अच्छा है ।
- सेवाग्राम शनि, १७ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१Even if he be your relation, do not try to hide his faults.
- June 21, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.सब हमें भले ढीले कहें, हम आदर्शको ढीला न करें ।
- सेवाग्राम ८ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९बगैर परिश्रमसे यानि बगैर तपके कुछ भी हो नहीं सकता है तो आत्मशोष कैसे हो शके ?
- जनवरी १७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०We shall cease to think only of ourselves when we think of others.
- Sunday, August 11, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.मरो और तरो ।
- नई दिल्ली ६ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२There is goodness as well as greatness in simplicity, not in wealth.
- July 31, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.मनुष्य ईश्वरको पूजे और मनुष्यका तिरस्कार करे यह बनने लायक नहीं है ।
- २८ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१જે મજા ન ખાવામાં છે તે ખાવામાં નથી. એનો અનુભવ કોને નથી થતો?
- જુલાઈ ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭रामकें लायक कम किये बिना रामनाम लेना फिजुल है ।
- २१ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८अपने गुण आप देखे और उसकी स्तुती दूसरोंसे करे उससे बड़के [बढ़कर] नीचता कैसी होगी?
- १४ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२Man by himself is nothing. But when he has become one with God, he is everything.
- July 14, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.हम सत्संग ढुंढते हैं क्योंकि हमारी आत्माके लिये वही खुराक है ।
- ट्रेनमें १७११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०शुभ विचार करना एक बात है, अमल करना अलग बात है ।
- ३ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९When everything belongs to God what shall we offer to Him?
- May 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.અફવા સાંભળવી નહીં, સાંભળવી. પોતાની સ્તુતિ કદી ન સાંભળવી.
- જુલાઈ ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭Life means not revelry—eating, drinking and making merry but praising God, i. e., rendering true service to humanity.
- February 17, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 430.How can he who does not know the art of living know the art of dying?
- October 31, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 463.जब आदमी अपना कम नहीं कर पाटा है क्यों व्याकुल बनता है?
- पूना ३० जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९जीना जूठ है, मृत्यु सही है, निश्चित है । (नानक)
- १९ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९३Faith transcends reason; it is not opposed to it.
- November 5, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.Physical weakness is not the real weakness. Weakness of the mind alone is the real weakness.
- January 3, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.However great the fury of the storm, the sea does not abandon its calm.
- July 29, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.સીધો રસ્તો જેવો સરળ છે તેવો જ કઠણ છે. એવું જો ન હોત તો બધા જ સીધો રસ્તો લેત.
- ડિસેમ્બર ૧૧, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭શું કરવું તે માણસ જાણે છે, પણ જાણે છે તે કરતો નથી. તેનું શું કારણ ?
- માર્ચ ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯There is only one way of achieving independence through non-violence : by dying we live, by killing never.
- March 13, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 433.Real weakness is internal, not outward.
- January 31, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.અનાસક્ત વ્યક્તિમાં અખૂટ ધીરજ હોવી જોઈએ.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૬, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૨જીવવાની મજા જીવનની જંજાળને છોડવામાં છે.
- નવેમ્બર ૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬अगर आदर्शको कभी न छोड़ा जाय तो आदर्श हमें कभी नहीं छोड़ेगा ।
- २९ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०सब दे दो, सब ले लो ।
- सेवाग्राम बुध, ७ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०मनुष्यकि आदत ऐसी है कि अपने दोषोंको भूलकर दूसरोंके देखता है, और बादमें निराशा ही रह जाती है ।
- १६ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१अनासक्तको अपना कुछ नहीं हो सकता है
- मद्रास जाती हुई ट्रेनपर जनवरी १९, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२पैसा परमेश्वर है ऐसे कहना गा;अत बात है और गा;अत सिध हो चूका है ।
- २५ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००सही चीजके पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निक्कमीके खुवार होते है और खुश होते हैं?
- १७ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१९A troubled mind causes more suffering than an ulcer.
- Friday, September 20, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.He who is the dust of everybodys feet is near to God.
- July 10, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 438.कुछ भी संकट हो प्रेमाग्निसे दूर होता है ।
- उरुली १ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९आदमी हेवानका कम करे और आदमी होने का दावा कैसे करे?
- सेवाग्राम शुक्र, १६ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१માણસને જયારે અથાતીત વસ્તુ મળે છે ત્યારે તેના આનંદનો પાર નથી રહેતો.
- માર્ચ ૨૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૧Money is God—it is wrong to say so, and it has been proved to be wrong.
- September 25, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.Death was a companion and friend. It was well with those who had died bravely.
- Harijan, April 20, 1947.रामनाम रूपी अमृत आत्माको आनन्द देता है, शरीरकी व्याधि दूर करता है ।
- पूना ९ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३देशों [के] बीचका समुद तैरना आसान है, व्यक्तिके बीच या प्रजाके बीच या प्रजाके बीच का समुद्र तैरना कठिन है
- नवेम्बर ६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६શ્રદ્ધાથી માણસ પહાડને ઓળંગી જઈ શકે છે.
- ડિસેમ્બર ૭, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭Supposing God is on the side of both, then who should fear whom?
- August 23, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.Have we any right to pray so long as we have not purged ourselves of our impurities?
- February 22, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 430.કૉન્ફ્યૂશિયસ કહે છે: સુવ્યવસ્થિત રાજ્યમાં ધનને પ્રગતિ નથી ગણતા. લોકોની અને તેમના આગેવાનોની પવિત્રતા એ જ રાષ્ટ્રનું સાચું ધન છે.
- મે ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨ઘણી ગેરસમજોનું મૂળ અવિશ્વાસમાં હોય છે. ઘણા અવિશ્વાસના મૂળમાં ભય હોય છે.
- જૂન ૧૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૬हे जिव! तू अनासक्त है तो तुझे शोरगुलको और मारपीटको भी बरदास्त करना है
- आसाम मेलमें, जनवरी ९, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२A satyagrahi never misses, can never miss, a chance of compromise on honourable terms.
- "An Englishman's Dilemma", Young India, April 16, 1931, CWMG, vol. XLVI, p. 7.अगर भीतरी बत्ती जले तो सरे जगतको प्रकाश देती है ।
- २४ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८દૂધમાં ઝેર હોય તો આપણે કૅફીદઈએ છીએ. તે જ પ્રમાણે સારા સાથે પાખંડ હોય તો તેને ફેંકી ડો.
- મે ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨What is big or small in sin? Sin is sin. To believe otherwise is self-deception.
- Friday, August 9, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.That which should be renounced must be declined as a matter of duty even if offered free.
- November 12, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.नानक कहते हैं कि ईश्वर हरेकके हृदयमें है और इस कारन हरेक हृदय ईश्वर मंदीर है ।
- २१ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४We are all mad. Which of us shall call whom mad?
- Monday, September 9, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.Deeds, like seeds, take their own time to fructify.
- February 19, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.જેમને રોટલો ન મળવાથી મારવાનું મન થાય છે, તેમને તો રોટલામાં જ ભગવાન દેખાશે.
- નવેમ્બર ૩૦ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮ધર્મ કંઈ જીવનથી ભિન્ન નથી, જીવનને જ ધર્મ માનવો જોઈએ. ધર્મ વગરનું જીવન મનુષ્યજીવન નથી, પશુજીવન છે.
- ફેબ્રુઆરી ૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩जब तुझे सब छोड़ेगा, तब इशेअर तो तेरे पास है ही ।
- २६ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८Nanak says : If we obey the law of God, we then need no man-made laws.
- July 23, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.मैं कब और ईश्वर कब? उसका निश्चय करने में ज्ञानकी परीक्षा है ।
- ६ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३Knowledge is that alone which enables a man to know him-self. In other words, knowledge means self-realization.
- October 1, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.हमारी गँदगी हमने जब [तक] नहीं नीकाली है तबतक प्रार्थना करने का हमें कुछ हक़ है क्या?
- जनवरी २२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६४जब हम रेलगाड़ीके समय के बाहर जाय तो गाड़ी चुकते हैं । प्रार्थनाके समय न पहुंचें तो?
- ६ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१It is sinful to multiply wants unnecessarily.(Written on 3-4-1945.)
- April 2, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 435.जबतक प्रेरणाको बुद्धिका समर्थन नहीं होता, तबतक वह पंगु है ।
- २५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२मनुष्यकी सच्ची पहचान उनके हार्दिक विनयसे होती है ।
- २९ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१जब हम जानते हैं कि एक वस्तुकी दो बाजु हैं, तो हम सफ़ेदको देखें ।
- १६ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२सच्चके जैसा कोई सुख नहीं, जूठके जैसा कोई दुःख नहीं ।
- पंचगनी १७ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८પવિત્રતાને બહારના રક્ષણની જરૂર જ નથી.
- ડિસેમ્બર ૨૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦માણસમાં બીજાને છેતરવાની શક્તિ કરતાં પોતાને છેતરવાની શક્તિ ઘણી વધારે છે. દરેક સમજુ માણસ આ વાતનું પ્રત્યક્ષ પ્રમાણ છે.
- ફેબ્રુઆરી ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૪भूल कबूल करना झाडूके समान है झाडू गंदकी साफ करता है, भूल का स्वीकार कम काम नहीं देता
- दिसम्बर ९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९વગર જરૂરે હાજતો વધારવી એ પાપ જેવું લાગે છે.
- માર્ચ ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯અસંગત એવી મોટી વસ્તુ નાની લાગે છે અને નાનામાં નાની સુસંગત વસ્તુનું સ્થાન મોટી વસ્તુ જેટલું જ છે.
- માર્ચ ૧૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૧शुद्ध प्रेम सब थकान दूर करता है ।
- सेवाग्राम गुरु, १५ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०True religion knows no territorial limits.
- December 31, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.Do not do anything do not read anything without understanding.
- Thursday, August 22, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.अहंतामें निकला हूआ वचन हमेशा जूठा समझो ।
- पूना १० मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२One who thinks in terms of mine and thine cannot be free from attachment.
- January 18, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 451.मूर्खको समजाना आसन है । अर्ध-दग्धको कौन समजा सकता है?
- ९ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२जो सचमुच भीतरमे स्वच्छ है वह बाहरमें अस्वच्छ हो ही नहीं सकता
- जनवरी २२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०God is our refuge and strength, a very present help in trouble. Psalms, XLVI. 1.
- March 7, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 432.અભિમાન માણસને ખાઈ જાય છે. એનું સમર્થન પ્રતિક્ષણ પ્રત્યેક માણસને જોવા મળે છે.
- મે ૧૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩Man cannot raise himself by searching outside. The scope for growth lies within.
- Wednesday, August 14, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.सिवा विरोधके कोई आगे नहीं बढ़ता है ।
- नई दिल्ली १ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२Says Nanak again : Whatever you give away is yours; whatever you keep is not yours.
- August 10, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 456.If we call God our Redeemer and let our indolence grow, we are committing a sin.
- May 21, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.एकांतकी खूबी जिसने जानबूझकर उसका सेवन किया है वही जानता है ।
- ९ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४बहूत गैरसमजकी जड अविश्वासमें होती है; बहूत अविश्वासकि जड़में भय होता है ।
- १८ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१આ પાછલું સૂચવે છે કે બધાની આવી સત્યની આરાધનામાં રહી છે. સત્યની ઉપાસનામાંથી સહુ ચીજ મળી રહે છે.
- જાન્યુઆરી ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૧तुमारे जेबमें एक पैसा है वह कहांसे और कैसे आया है वह अपनेसे पूछो उस कहानी से बहुत सीखोंगे
- नवेम्बर २९ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८जिसको जम पहोंचना चाहते हैं करीब २ उसके जैसा हमारे [हमें] बनना है ।
- नई दिल्ली बुध, २५ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४जब आत्मा मरता है, तब परमात्मा जगह रोकता है ।
- १६ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९If the inside is clean, the outside is bound to be so.
- April 5, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.We have made ourselves what we are.
- March 1, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.He who does not want to be a slave of anyone, must become the slave of God.
- December 28, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 448.Verily, the land belongs to him who labours on it.
- January 21, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.जिसके साथ ईश्वर है उसके साथ सब है ।
- दिल्ली ९ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५British, "Quit India"
- "Speech at AICC", CWMG, vol. LXXVI, p. 391.मनुष्य जब एक नियम तोड़ता है तो दूसरे अपने आप तूट जाते हैं ।
- १४ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७राग-द्वेषादि भी व्याधि है और शारीरिक व्याधिसे बदतर है । उसका निवारण रामनामके बिना कैसे हो सके?
- उरुली २३ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४પોતાની એબ હમેશાં સાંભળવી. પોતાની સ્તુતિ કદી ન સાંભળવી.
- જુલાઈ ૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭मनुष्य जब अपने स्वभावको दबाता है तब सावधानीकी बड़ी आवश्यकता है ।
- पंचगनी २२ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८What is true of purity is true of all other virtues. Nonviolence is tested when it faces violence.
- October 20, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.जिसको शांति नहीं व् दृढ़ता नहीं, वह ईश्वरको नहीं पा सकता है ।
- मसूरी २८ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०He alone lives in whose heart dwells Rama (God) and who is ever aware of such presence.
- August 1, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.अगर ध्यानसे देखें तो पृथ्वीपर स्वर्ग छाया हूआ है, आकाशमें नहीं ।
- ७ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२જિંદગી ગુલાબ જેવી મનાય છે. જીંદગીમાં પણ કાંટા હોય છે માટે.
- મે ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨ગામડાંની દૃષ્ટિએ હિંદુસ્તાનનો વિચાર કરીએ તો ઘણી બધી ચીજો જે આપણે કરીએ છીએ તે નકામી લાગે.
- જુલાઈ ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૮श्रद्धासे जहाज चलती है ।
- नई दिल्ली शनी, ७ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२એથી ઊલટું નિરભિમાન અથવા નમ્રતા માણસને પોષણ આપે છે અને વિકસાવે છે.
- મે ૧૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩Just as only others can see a mans back while he himself cannot, we too cannot see our own errors.
- May 5, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 431.જે જબરદસ્તીથી ગરીબ બન્યો છે તે સ્વેચ્છાએ ગરીબ બની હ્સકતો નથી.
- ડિસેમ્બર ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯Our faith should be like an ever-burning lamp which not only gives us light but also illuminates the surroundings.
- March 2, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.नानक कहते हैं सुखकी लालसा सच्ची व्याधी है दुःख उसका उपचार है ।
- ९ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९६हमारा जीवन रोज नया होता है यह ज्ञान हमको उंचे जाने के लिये मददगार बनना चाहिये ।
- १६ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९મારે અમુક આદર્શ છે એમ હું તો જ કહી શકું જો હું એ આદર્શને પહોંચવાનો પ્રયત્ન કરતો હોઉં. ૧૫-૪-૪૫
- માર્ચ ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦પુખ્ત વાચનથી શક્તિ તો આવે છે પણ જ્ઞાન વગર સાચી સ્વતંત્રતા નથી મળતી.
- ફેબ્રુઆરી ૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩हिमालय दूरसे ही अच्छा लगता है ऐसे प्रायः सब चीजके लिये है ।
- १८ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३आदमी प्रतिक्षण जाग्रत न रहें तो सत्य उसे मिल ही नहीं सकता है ।
- ३ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५Do not think, speak or write without reflecting. Consider how much time could thereby be saved.
- July 11, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 438.He who harps on his woes, multiplies them manifold.
- February 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.जो शरीर श्रम कर सकते हैं उनके लिये सदाव्रत खोलना पाप है उनके लिये कम पैदा करना पुण्य है
- दिसम्बर २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८If God resides in every heart, then who dare hate whom?
- July 22, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.वहम और सत्य साथ नहीं चल सकते हैं ।
- मद्रास २७ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८સત્યાગ્રહી કહેવડાવવાથી માણસ સત્યાગ્રહી નથી બનતો. શુદ્ધ સત્યનું પાલન કરવાથી જ માણસ સત્યાગ્રહી બને છે.
- એપ્રિલ ૨૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૧An ideal is one thing; living up to it is quite another.
- April 12, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 436.He who is poor by force of circumstances, cannot become poor by choice.
- December 16, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.માણસ નિયમબદ્ધ રહે છે એનાથી એને જે સંતોષ મળે છે તેનાથી જ એનું સ્વાસ્થ્ય અને આયુ વધે છે.
- મે ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩He who explores the branch and forgets the root, strays.
- July 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.Despair corrodes man.
- Sunday, August 25, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.He who loses patience, loses Truth as well as Non-violence.
- July 17, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.जो मनुष्य इर्द गिर्दके वायुमंडलका गुलाम बनता है, वह मंदबुद्धि बनता है ।
- पूना २० फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०મન બે પ્રકારના હોય છે: એક નીચે લઈ જાય છે, બીજું ઉપર. એને આપણે બરાબર વિચાર કરી ઓળખી લેવાં જોઈએ.
- મે ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨Belittling ones mother tongue is like disparaging ones own mother.
- September 13, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 459.अभिमान मनुष्यको खा जाता है । उसका समर्थन प्रतिक्षण हरेक आदमीको होता है ।
- १८ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८मनुष्य शरीर वाजित्र [वादित्र] है जैसा सूर निकालना है निकल सकता है ।
- नई दिल्ली ४ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२પવિત્રતા પડદામાં નથી રહેતી. તેને તો ઈશ્વરની જ રક્ષા જોઈએ.
- ડિસેમ્બર ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯જીવવું એટલે મોજ કરાવી - ખાવું, પીવું, કૂદવું - નહીં, પણ ઈશ્વરની સ્તુતિ કરવી અર્થાત્ માનવજાતિની સાચી સેવા કરવી.
- ફેબ્રુઆરી ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૫સંપૂર્ણ અહિંસામાં દ્વેષનો સંપૂર્ણ અભાવ હોય છે.
- ડિસેમ્બર ૨૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦जो मनुष्य अपनेपर काबु नहीं रख सकता है वह दूसरोंपर कभी सच्चा काबु नहीँ रख सकता
- जनवरी २८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१અનાસક્તિની સાચી કસોટી ત્યારે થાય છે જયારે કોઈ કામને માટે આસક્તિનો પૂરો સંભવ પેદા થાય છે.
- જૂન ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૫जो ईश्वरको याद करता है वह दूसरा सब भूल सकता है ।
- २४ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७मनुष्य बहारसे ढुंढक्र अपनेको बढ़ा नहीं सकता है बढ़ने का स्थान भीतर है ।
- सेवाग्राम बुध, १४ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०In order to know himself, man must come out of his shell and view himself dispassionately.
- January 29, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.I have sacrificed no principle to gain a political advantage.
- "Notes, Young India, March 12, 1925", CWMG, vol. XXVI, p. 285.Even one drop of the poison of untruth will poison the entire milk-ocean of Truth.
- August 6, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.Faith makes the ship move.
- Saturday, September 7, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.स्वार्थको जब मनुष्य परमार्थ मानता है तब सियारको सिंह मानने जैसा करता है ।
- १७ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२मन दो प्रकारके हैं ー एक नीचे ले जाता है, दूसरा उचे । इसे हम बराबर सोचें और पहचाने ।
- ४ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५६भलाईके साथ सब सहन करने की हिम्मत नहीं रहती है, तब भलाई पंगु है ।
- ११ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९कृत्रिम नहीं, लेकिन स्वाभाविक हास्य भव्य भाषण है और भाषणसे ज्यादा कम देता है ।
- १६ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८To rejoice in happiness is to invite misery. Real happiness springs from sorrow and suffering.
- May 15, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.भौतिक ज्ञान सबके नसीबमें नहीं है । आत्म ज्ञान सब पा सकते हैं, पाने का सबका धर्म है ।
- नई दिल्ली २८ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४रामनामकी भी शक्तिकी मर्यादा है । क्या कोई चोर रामनामसे कामयाबी हांसिल कर सकता है?
- बम्बई १५ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३નિયમ તૂટે એ કેવું જોખમકારક છે ! મુંબઈ આવ્યો ને રોજ લખવાનું છૂટી ગયું.
- માર્ચ ૩૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯तुझे क्या, लोग तेरी निंदा करें या स्तुति! जो धर्म समझ वही किया करे
- सरानी या गोहती जनवरी १०, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२हार्दिक श्रद्धा और श्रद्धाकी इच्छामें बड़ा अंतर है । यह नहीं जानने से आदमी धोकेमें पड़ता है ।
- नई दिल्ली २७ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४त्रिविध ताप मिटाने वाली दवा मात्र रामबाण [रामनाम] है ।
- २४ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०He who knows no rules and follows none just cannot be a servant of the people.
- October 10, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.जब ऐसी स्थिति है, तो नाचना क्या, अभिमान क्या?
- ३० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२एक कानून तोडा तो सब तूटे क्योंकि सब कानूनोंका मूल एक है और रक तूटने से आत्मसंयम तूटा ।
- २६ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००Every minute of my life I am conscious of the presence of God. Why, then, need I fear anyone?
- June 29, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.આટલું સમજીને આપણે જે વ્યાધિ આવે તે રામભરોસે રહીને વેઠી લઈએ અને આપણું જીવન આનંદમય બનાવીને ગુજારીએ તો કેવું સારું!
- જાન્યુઆરી ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૦ભૂતકાળ આપણો છે, આપણે ભૂતકાળનાં નથી. આપણે વર્તમાન છીએ અને ભવિષ્યને બનાવવાવાળાં છીએ, ભવિષ્યનાં નહીં.
- નવેમ્બર ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬नानक कहते हैं अगर हम ईश्वरके कानूनपर चलें तो हमें मनुष्यके कानूनकी गुंजायश नहीं रहती है ।
- २३ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४कहा जाता है भूखका दुःख बड़ा है हम है हम अगर इनसान रहना चाहे तो उस दुःखको भी भूलें ।
- नई दिल्ली शनी, २१ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४We can do nothing right, so long as we are not blessed with inner light.
- February 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.Man must never suppress his inner voice even if he stand alone.
- June 24, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.ईर्ष्या करनेवालेको खाती है । जिसकी वह ईर्ष्या करता है, वह अविच्छिन्न रहता है, शायद अनजान भी ।
- २९ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५९सबसे बडी चुप ।
- नई दिल्ली गुरु, २९ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२जो मजे नहीं कहने में है वह कहने में नहीं है । ऐसा अनुभव कौन नहीं करता?
- ३ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३કોઈની એબ કાઢવી સહેલી વાત છે, તે પુરવાર કરવી એ બીજી વાત છે.
- જુલાઈ ૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭शुद्ध विचारकी शक्ति वचनसे बहूत अधिक है ।
- २६ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०થોડું જૂઠ પણ મનુષ્યનો નાશ કરે છે, જેમ ઝેરનું ટીપું દૂધનો.
- ડિસેમ્બર ૧૬, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૮We seek the company of the good, for that is the food for our soul.
- February 17, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.गंदे ख्यालका विचार करने से वे हेट नहीं लेकिन उसका संग पैसा होने का सभव [संभव] है ध्यायविषयान् ।
- नई दिल्ली सोम, ३० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४Only that work which is done after anger has subsided can bear fruit.
- January 22, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 407.Perfection is only an ideal for man; it cannot be attained, for man is made imperfect.
- April 22, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.धैर्यके फल मीठे होते हैं ।
- २८ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८He is lost who is possessed by carnal desire.
- "A Student's Perplexity, Harijan, October 19, 1947", CWMG, vol. LXXXIX, p. 324.जो आदमी अपने कामके लिये हिंसा कर सकता है वह असत्य क्यों नहीं बोलेगा या करेगा?
- ३० अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८Life is unreal, death is real and certain. —Nanak
- July 19, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.रोगग्रस्त शरीर सही बन सकता है, रोगग्रस्त मन नहीं ।
- १३ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२किसीका एब निकलना एक बात है उसे साबित करना दूसरी बात है ।
- ८ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४सत्याग्रही वही हो सकता है जो जीने की और मरने की कला जानता है ।
- बम्बई १४ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३There is a limit to violent action and it can fail. Non-violence knows no limit and it never fails.
- December 11, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.जब मनुष्य आकाशके नीचे सोता है तो उसे कौन लूट सकेगा?
- दिल्ली २ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५જે માણસ સૌની ચરણરજ હોય છે તે ઈશ્વરની નજીક છે.
- જુલાઈ ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭જેમ પિંડમાં બ્રહ્માંડ છે તેમ ગામડામાં હિંદુસ્તાન છે.
- જુલાઈ ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૮When the soul awakes, all sorrow vanishes.
- March 30, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.A leader is useless when he acts against the promptings of his own conscience.
- "Notes, Young India, February 23, 1922", CWMG, vol. XXII, p. 448.મનુષ્ય ભોગને નથી ભોગવતો પરંતુ ભોગ મનુષ્યને ભોગવે છે. અર્થાત્ ખાઈ જાય છે.
- નવેમ્બર ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬Verily, there should be only one fear—the fear of doing something mean or untrue.
- May 8, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 431.Do not listen to rumour; but, if you do, do not believe it.
- July 4, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.जमीनका मालिक तो वही है जो उसपर महेनत करता है
- जनवरी २१, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०जैसे अक[एक] फोडा भी आदमीको तंग करता है उससे भी बदरतर उद्विन्गता है ।
- नई दिल्ली शुक्र, २० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४If God so desires it, I may have to become a helpless witness to the undoing of my dream.
- "An English Suggestion, Harijan, May 4, 1940", CWMG, vol. LXXII, p. 27.અપરિગ્રહનો અર્થ એ છે કે આપણે એવી કોઈ વસ્તુનો સંગ્રહ ન કરવો, જેની આપણને આજે જરૂર નથી.
- નવેમ્બર ૨૫, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૬जो ईश्वरको साक्षी रखकर कुछ सोचता है, बोलता है, करता है वह सच्चा करने से कभी शरमींदा नहीं होगा ।
- ५ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८जब मनुष्य अपनेको पहचानता है, तब मुक्त है ।
- १८ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८અનાસક્તિનું એક લક્ષણ આ છે: અનાસક્ત વ્યક્તિનું કોઈ પણ કામ દિવસના અંતે બાકી રહેતું નથી.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૫, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૨हमें बुद्धि है और इससे प्रे अन्तर्नाद है । दोनोंकी अपनी-अपनी जगह जरुरत है ।
- मदुरा-पलनी ३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९जब जगत् हमें गिराता है, तब ईश्वर हमारा बेली होता है ।
- सेवाग्राम ७ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९In the darkest hour of my trial, that one name has saved me.
- "Harijan, March 18, 1933", CWMG, vol. LIV, p. 112We are no better than any other—this thought is full of truth and humility.
- May 12, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.जिंदगीका एक भी क्षण नहीं है जिसमें आदमी सेवा नहीं कर सकता है ।
- दिल्ली ३ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५Repression itself affords a training in satyagraha, even as an unsought war affords a training for the soldiers.
- "The States, Harijan, April 8, 1939", CWMG, vol. LXIX, p. 102.Without the maximum possible non-attachment, it is inconceivable for anyone to live up to the age of 125 years.
- January 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 407.Everyone, prince or pauper, is the guardian of his own dharma. What is there to grieve or rejoice in this?
- September 11, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 459.To find fault is one thing; to prove it is another.
- July 8, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 438.पवित्रताकी परीक्षा तब होती है जब अपवित्रतासे घर्षण होता है ।
- १९ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३इनसान तुझे फेंकता है उसे [उससे] क्या, अगर खु[दा] तुझे रखना चाहता है ।
- शनि, ५ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५जब तक हमें भीतरसे रौशनी मिलती है हम कुछ सही नहीं कर पाते है ।
- सेवाग्राम ११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०To seek a favour is to barter away ones freedom.
- February 2, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.जब हमारा प्रेरक भगवान होता है, तब हमको और कोई ख्याल नहीं करना पड़ता है ।
- १५ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३अपरिग्रहसे मतलब यह है कि हम कोई चीजका संग्रह न करें जिसकी हमें आज दरकार नहीं है ।
- २५ नवम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१७Simplicity cannot be affected, it should be ingrained in ones nature.
- Tuesday, August 13, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.He who does not labour and yet eats, eats stolen food.
- November 27December 3, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 445.If all become teachers, who will be the pupils? So let us all be pupils.
- April 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 416.हमारा सबसे बड़ा शत्रु विदेशी नहीं है, न कोई दूसरा हमारा शत्रु हम ही है अर्थात हमारी बासना
- दिसम्बर २७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०આ વસ્તુ નાનામોટા સૌને માટે છે એમ વિચારીને આપણે શીખીએ ને તે પ્રમાણે ચાલીએ, નહીં તો જીવતાં છતાં મૂએલા છીએ.
- માર્ચ ૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯રાઈ જેટલો નાનો દોષ છુપાવવાથી પહાડ જેટલો મોટો બની જાય છે. પણ જાહેર કરી દેવાથી તે નાબૂદ થઈ જાય છે.
- નવેમ્બર ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬आकांक्षा कितनी भी बड़ी हो उसकी मर्यादामें छोटेसे-छोटा माना जाता प्राणी भी होना चाहिये ।
- नई दिल्ली बुध, ११ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३जो किसीकी गुलामी करना नहीं चाहता है उसे ईश्वरकी गुलामी करना है
- दिसम्बर २८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१જ્યાં સુધી એક પણ માણસ, કામ ન મળવાને કરને ભૂખે મારતો હોય ત્યાં સુધી કોણ ચેનથી ખાઈ શકે?
- નવેમ્બર ૨૮ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮बलात्कारके वश होना नामर्दीकी निशानी है ।
- नयी दिल्ली मंगल, २७ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१Whenever I see an erring man, I say to myself I have also erred.
- "Convocation Address at Bihar Vidyapith, Patna, Young India, February 10, 1927", CWMG, vol. XXXIII, p. 134.Everyone grows old with the passage of time; desire alone remains ever youthful.
- November 8, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.Dying for religion is good; for fanaticism, neither dying nor living.
- Friday, September 13, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.Our personal cleanliness counts for little if our neighbours are not clean.
- June 1, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.करना है ईश्वरका कम लेकिन वह हम कैसे जाने ।
- नई दिल्ली बुध, २ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५समतोलना सब ज्ञानमें उत्तम है ।
- २२ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२सच्ची दुर्बलता बाहरी नहीं है अंतरकी ही है ।
- ३१ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८पुख्त वांचनसे शक्ति तो आती है लेकिन बिना ग्नानके सही स्वतंत्रता नहीँ मिलतीं
- जनवरी १, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१However lofty the ambition, even those considered the lowliest of creatures should come within its ambit.
- Wednesday, September 11, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.अनासक्त कार्य शक्तिप्रद है क्योंकि अनासक्त कार्य भगवान् भक्ति है
- जनवरी १९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०માણસની શાંતિની કસોટી સમાજમાં જ થાય, હિમાલયની ટોચ પર નહીં.
- માર્ચ ૧૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦सत्य के दर्शनके लिए संतोंका चरित पढना और उसका मनन करना आवश्यक है ।
- ३ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८समुंदरमें पड़ीं हूई मछी अगर समंदरको पहचान सकती है तो संसारमें पड़ा हूआ प्राणी संसारको पहचान सकता है ।
- १७ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९३It is useless to recite Ramanama without acting in a manner worthy of Rama.
- April 21, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.श्रध्दाकी परीक्षा सबसे कठिन अवसरपर होती है
- दिसम्बर १२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९To surrender to force is a sign of unmanliness.
- Tuesday, August 27, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.કંઠસ્થ જ્ઞાનની એટલી કિંમત છે જેટલી પોપટને રામનામની.
- જૂન ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૫Why does a man become restless when he is unable to do his work?
- July 30, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.देहधारीके लिये जो शक्य अनासक्ति हो सकती है, उसके सिवा १२५ वर्षकी आयु असंभव मानी जाय ।
- मद्रास जाते हुए ट्रेनमें २० जनवरी, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५७जो दूसरा सब याद रखे और ईश्वरको भूले उसने कुछ याद नहीं किया है ।
- २५ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७विचारशून्य जीवन पशु जीवन जैसा है ।
- नई दिल्ली मंगल, २४ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४जब हम कुछ भी देते हैं, तो हमारेमें जो सच्चा [है] वही दें ।
- १५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१Thought pierces even a wall of steel.
- September 5, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.God is omnipresent. Hence it is that He speaks to us through stones, trees, insects, birds, beasts, etc.
- February 24, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.जो जीवन सेवामें व्यतीत होता है वही फलदायी है ।
- नई दिल्ली सोम, १६ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३ज्ञानी पुरुष त्यागसे ही शांति पाता है ।
- ५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१रामनाम रस पीना है तो काम, क्रोधादि निकालना चाहीये ।
- २० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२This office-holding is either a step towards greater prestige or its total loss.
- "Martial v. Moral, Harijan, April 23, 1938", CWMG, vol. LXVII, p. 39.Steadfastness in meditation indicates depth of thought; it also makes for purity and maturity of thought.
- June 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.પરમેશ્વર પર વિશ્વાસ રાખવો સૌથી સહેલું હોવું જોઈએ પણ સૌથી મુશ્કેલ એ જ લાગે છે.
- જૂન ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૬Sacrifice which causes pain is no sacrifice at all. True sacrifice is joy-giving and uplifting.
- June 25, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 436.વિદુરજી, જેમને ધર્મનો ખ્યાલ નથી રહેતો એવા દસ પ્રકારના લોકોમાં લોભી, કામી, ક્રોધી અને શરાબી લોકોને ગણાવે છે.
- નવેમ્બર ૧૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬Sacrifice with regret is no sacrifice.
- April 23, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.આ તે કેવી વાત છે કે માણસ સાચું કહેતાં અને કરતાં દરે છે, જૂઠથી નથી ડરતો.
- મે ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨जीना मानी मोज करना--खाना, पीना, कूदना नहीँ, लेकिन ईश्वरकी स्तुतो करना अर्थात् मानव जातिकी सच्ची सेवा करना
- जनवरी १७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३श्रध्दा बुद्धिसे परे है, उसकी विरोधी नहीं है
- नवेम्बर ५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६Nanak says : The craving for happiness is a veritable disease. Sorrow or suffering is its remedy.
- August 9, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 456.जो डरता है वह खोता है ।
- दिल्ली जाते हुए ३१ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४To gain immortality through divine endowment is not a big thing. To fulfil our obligations in daily life is.
- May 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.अनासक्तिका एक लक्षण यह है : अनासक्तका कोई कार्य दिनके अंतमे बाकी नहीं रहता
- सोदपुर जनवरी १५, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२Fewer people die from disease than from fear of disease.
- May 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.જે મનુષ્ય આ મારું અને આ તારુંમાં મને છે, તે અનાસક્ત નથી થઈ શકતો.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૮, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૨શ્રદ્ધાની પરીક્ષા અત્યંત મુશ્કેલીના સમયે થાય છે.
- ડિસેમ્બર ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯जब हम पार्टी साफ़ करते हैं तो उसपर ईश्वरके हस्ताक्षर स्पष्ट देखते है ।
- नई दिल्ली मंगल, १० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३Life becomes perpetually renewed every day. This knowledge should be helpful in uplifting us.
- September 16, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 459.Our greatest enemy is not the foreigner, nor anyone else. We ourselves, that is, our desires, are our enemies.
- December 27, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 448.જે માનસ સૌને ખુશ રાખવા ઈચ્છે છે, તે કોઈને ખુશ નહીં કરે.
- જૂન ૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૪जब हमारा बाहरी जीवन भीतरी जीवनका कब्जा पाटा है, तब परिनाम तेढ़ा ही रहता है ।
- १९ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८थोड़ासा झूठ भी मनुष्यका नाश करता है जैसे दूधको एक बूंद झहर भी ।
- १६ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१९જેમ આપણે પોતાના ધર્મને આદર આપીએ છીએ તેમ જ બીજા ધર્મોને પણ આપવો- માત્ર સહિષ્ણુતા પર્યાપ્ત નથી.
- નવેમ્બર ૨૭, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૬A foreigner deserves to be welcomed only when he mixes with the indigenous people as sugar does with milk.
- January 23, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 407.જેણે પોતાપણું ખોયું તેણે બધું ખોયું.
- ડિસેમ્બર ૧૦, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭દુઃખના સમયમાં જે ભગવાનનાં દર્શન કરે છે, તેને કોઈ દર લાગતો નથી.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૬, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧Superstition and truth cannot go together.
- January 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.बोलना या नहीं ऐसा संशय है तब मौन ही बोलने का स्थान लेता है ।
- २५ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३One can never find Truth if one is not wide awake every moment of ones life.
- August 3, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.ભાગ્ય અને પુરુષાર્થનો ઝઘડો રોજ ચાલ્યા કરે છે. આપણે પુરુષાર્થ કર્યા કરીએ અને પરિણામ ઈશ્વર પર છોડીએ.
- માર્ચ ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૭સીધી વાતને પણ જે માણસ આડી સમજે, તેને સહન કરવામાં કેટલી ભારે અહિંસા જોઈએ !
- માર્ચ ૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯दो विरोधि वस्तु हम साथ-साथ नहीं कर सकते हैं, न जम ऐसे सोच सकते हैं ।
- १ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८आत्माका दर्शन जितना होता है इतना ही मनुष्य आगे बढ़ता है ।
- नई दिल्ली गुरु, १९ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३जिने की मजे जीने की जंजाल छोड़ने में है
- नवेम्बर १, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७५जीवनकी सफलताका सही निशान है कि मनुष्य कोमल बनता जाता है और पिढ ।
- मद्राससे ट्रेनमें ४ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९When we wipe the slate clean, we see Gods signature clearly on it.
- Tuesday, September 10, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.आदमी अपने भीतरी आवाजको कभी न दबावे, भले ही वह अकेला हो ।
- २४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२Silence above all.
- Thursday, August 29, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.ईश्वर हमारा सुकन है और नाखुदा भी ।
- दिल्ली १२ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६६It is easy to instruct an uneducated person, but who can carry understanding to a man of little learning?
- October 9, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.આપણે આપણી ગંદકી કાઢી નથી ત્યાં સુધી પ્રાર્થના કરવાનો આપણને હક છે ખરો ?
- ફેબ્રુઆરી ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૫जो धर्म यंत्रवत बनता है वह धर्म नहीं कहा जा सकता है ।
- २३ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००We exist, because God is. This shows that man, or any living being, is part of the Divine.
- February 24, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 431.A life without thought is like that of a beast.
- Tuesday, September 24, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.जो समय बचाना चाहता है वह अनावश्यक बात एक भी नहीं करेगा ।
- पंचगनी २४ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९Pure thought is far more potent than speech.
- May 26, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.ईश्वरका कम जाने [जानने] का साधन है हार्दिक प्रार्थना और तदनुसार कम ।
- गुरु, ३ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५बुखारका कारण बदहजमी इ[त्यादी] ही नहीं है । क्रोध करने से भी बुखार आ सकता है ।
- २१ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००When the world rejects a man, God befriends him.
- February 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.Not to do evil is the only true law of life, says Guru Teg Bahadur.
- July 18, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.सत्य वचनकी शक्ति वहां तक जाती है कि मनुष्यको स्वार्थसे परमार्थमें ले जाती है ।
- ३१ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५God and Satan cannot both occupy the throne of the heart.
- Thursday, September 12, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.Renunciation which does not spring from the heart cannot be abiding.
- January 5, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.हमारी श्रद्धा अखंड बत्तीके जैसी होनी चाहिये । हमको तो प्रकाश देती है लेकिन आसपास भी देती है ।
- पूना २ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२When a man empties his heart, God enters it.
- April 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.There is no sin like untruth, even as a million berries heaped together cannot equal a mountain. —Tulsidas
- October 7, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.To speak the truth, you have to weigh your words again and again.
- June 4, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.जब हम अपने मूलसे जूदा होते हैं तब मरते हैं, नहीं की आत्मासे शरीर जूदा होता है तब ।
- १० जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३सुखमे सुख देखना दुःख है, दुःखमें से सच्चा सुख निकलता है ।
- १५ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८Mans capacity for self-deception is immeasurably greater than that for deceiving others. Every sensible person will testify to this.
- February 15, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 430.त्याग ही सच्चा भोग है ।
- मद्रास ३० जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८ट्रेनको चलाने वाली शक्ति सीटी नहीं है, लेकिन बाफमें रही युक्त शक्ति है ।
- कालका १४ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९True suffering does not know itself and never calculates. It brings its own joy which surpasses all other joys.
- "The Congress, Young India, March 19, 1931", CWMG, vol. XLV, p. 310.In complete non-violence, there is complete absence of hatred.
- December 23, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 448.My grace is sufficient for thee : for my strength is made perfect in weakness. II Corinthians, XII. 9.
- March 6, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 432.અનાસક્ત વ્યક્તિને પોતાનું કશું જ હોતું નથી.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૯, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૨Beauty lies not in the complexion but in Truth alone.
- December 4, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 446.Gita is pre-eminently a description of the duel that goes on in our own hearts.
- "Religious Authority for Non-cooperation, Young India, August 25, 1920", CWMG, vol. XVIII, p. 195.अनासक्ति कितनी कठिन है अनुभवसे ही पता चलता है ।
- नई दिल्ली रवी, २२ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४I have no disciples, being myself an aspirant after discipleship and in search of a guru.
- "What is Non-Violence? Harijan, December 19, 1936", CWMG, vol. LXIV, p. 152.धर्मका जामा पहनने से पाप पुण्य नहीं बनता; भूल भूल नहीं मिटती ।
- ५ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१जब हम अपना ही ख्याल करते हैं तब दूसरोंका ख्याल करने से वह छुटता है ।
- सेवाग्राम रवि, ११ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०Selfishness keeps us worrying for ever.
- March 3, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.जैसे बीजको फल देने में अपनी मुद्दत चाहीये, ऐसे ही कार्यके लिये है ।
- बम्बई १९ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०जब आदमी अंतर खली करता है तब ईश्वर वह खली जगह भरता है ।
- दिल्ली ७ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५વિકારી વિચારોથી બચવાનો એક અમોદ્ય ઉપાય- રામનામ- છે. નામ કંઠમાંથી જ નહીં પરંતુ હૃદયમાંથી નીકળવું જોઈએ.
- ડિસેમ્બર ૨૮, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૯જે માણસ પોતા પર કાબૂ નથી રાખી શકતો તે બીજા પર કદી સાચો કાબૂ નહીં રાખી શકે.
- જાન્યુઆરી ૨૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩Even nectar turns into poison if poison is added to it.
- June 23, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.Why seek outside that which is within you?
- February 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.जो ईश्वरके सन्मुख है वह बोलता नहीं, बोल सकता नहीं ।
- पुना, रविवार ४ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०हमारे हृदयकी गद्दीपर खुदा बैठे और शैतान भी, नहीं हो सकता ।
- नई दिल्ली गुरु, १२ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३Man can smile away his sorrows; by crying he only multiplies them.
- April 1, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.Man knows what his duty is, yet does not do what he knows he ought to. Why is that so?
- April 4, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 435.[Ramanama] is the only unfailing remedy for mans threefold ills.
- May 24, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.જે કોઈ વ્યક્તિ કોઈની પણ ગુલામી કરવા માગતો નથી, તેણે ઈશ્વરની ગુલામી કરવી જોઈએ.
- ડિસેમ્બર ૨૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦જે માણસ કોઈ એક ચીજ ઉપર એકનિષ્ઠાથી કામ કરે છે, તે આખરે બધી ચીજ કરવાની શક્તિ પ્રાપ્ત કરે છે.
- ડિસેમ્બર ૮, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭ध्यानावस्थित होने से हम मंद नहीं होते हैं ।
- ११ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३This day deserves to be written in letters of gold for, on April 6, 1919, India discovered herself.
- April 6, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.I would far rather that Hinduism died than that untouchability lived.
- "Speech at Minorities Committee Meeting, November 13, 1931", CWMG, vol. XLVIII, p. 298.જે વિરોધી પાસે દયાની અપેક્ષા રાખે, તે અહિંસા નથી.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૪, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧स्वाभाव अगर बुरा है तो उसे दबाना नहीं पर उसे फेंक देना ।
- पंचगनी २३ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८प्राण जाय वरु वचन न जाई ー तुलसीदास
- ६ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१The moment the cultivators of the soil realise their power, the zamindari evil will be sterilised.
- "Discussion with Basil Mathews and Others, Harijan, December 5, 1936", CWMG, vol. LXIV, p. 73.जो ईश्वर चतुर्भुज है वह सहस्त्र भुज भी होता है । येह बताता है कि सब काल्पनिक है ।
- नई दिल्ली रवि, २९३० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४Man is where his mind is, not where his body is.
- January 13, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.A leader is only first among equals.
- "In Earnest, Young India, December 8, 1921", CWMG, vol. XXI, p. 538.धर्म वह है जो सब धारण करता है यानि सब हिस्सेमें सब समय जीवनमे ओतप्रोत है
- जनवरी ४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६२ख़ामोशी ख़ामोशी नहीं है जो डरके मरे होती है ।
- सेवाग्राम ६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९How can one claim to be human if he acts like a beast?
- Friday, August 16, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.वही जिंदा है जिसके हृदयमें राम रहता है ऐसा जानता है ।
- १ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५अगर सत्य किसीको बताना है तो अखुट धैर्य चाहीये ।
- पूना २८ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९નિયમ વગર એક પણ કામ ન ચાલે. એક ક્ષણને માટે પણ નિયમ તૂટે તો આખું સૂર્યમંડળ અસ્તવ્યસ્ત થઇ જાય.
- માર્ચ ૩૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯Everything is right and proper in its place, improper when out of place.
- Monday, August 19, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.मीराबाईके जीवनसे हम बड़ी बात यह सीखते है कि उसने भगवान्के लिये अपना सब कुछ छोड़ा ー पति भी ।
- ५ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८He alone can offer sacrifice who is pure, fearless and worthy.
- Saturday, August 24, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.He who denies the existence of God denies his own.
- September 8, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 458.Silence inspired by fear is no silence.
- February 6, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.खुश करना तो खुदाको, खुशामत करना तो भी उन्हींकि, यो हम सब चिंता और झंनझंटसे छुट जाते हैं ।
- २ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६०To remain entangled in things physical and aspire for self-realization is like asking for the moon.
- May 30, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.गुरु तेघबहादुर कहते हैं कि गंदा काम नहीं करना यही सही कानून है ।
- १८ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९३कच्चा धान फेंकने लायक है । [ऐसे] ही क्स्च्चे कामका [को] समझाना ।
- ९ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७जब आपको मनुष्य खोता है, तब ही आपको पाता है ।
- ७ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३Inexhaustible patience is needed if Truth is to be brought home to anyone.
- July 28, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.Truth should be accompanied by firmness of purpose.
- January 26, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.हम ऐसी गलती मानने कि कभी न करें कि गुनाहमें छोटा-बड़ा ओह्ता है ।
- १ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८कलके वचनका नतीजा यह होता है कि अपने आयुष्यमें इतनी वृद्धि करता है ।
- २२ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६२વગર વિચારે કશું વિચારવું, બોલવું કે લખવું નહીં. અને વિચાર કરો કે એથી કેટલો બધી સમય બચી જાય છે.
- જુલાઈ ૧૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૮જે શ્રદ્ધા ક્યારેય બુઝાતી નથી, પણ વધતી રહે છે, તે અનુભવ બને છે.
- ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮કોઈ પણ કામ કરીને જયારે મનુષ્ય દુઃખ મને છે, તો સમજવું કે તે જ્ઞાનપૂર્વક નથી કરતો પૂરતું મજબૂરીથી કરે છે.
- જૂન ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૫નકામો શબ્દ પણ સત્યનો ભંગ કરે છે. એ જ કારણે મૌનથી જ સત્યનું પાલન સહેલું બની જાય છે.
- મે ૨૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩આપણે પોતે મેલા રહીએ અને બીજાઓને સ્વચ્છ રહેવાની સલાહ આપીએ એ કેટલું ખોટું છે !
- ફેબ્રુઆરી ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૪The true mark of success in life is the growth of tenderness and maturity in a man.
- February 4, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.There can be no perception without steadfastness of mind.
- January 28, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.શું મોત કોઈ પણ સંજોગોમાં અતિશય દુઃખમાંથી મુક્તિ નથી? જો છે, તો શોક શા માટે?
- મે ૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨जो भगवानमें लीन है वह भगवानके बाहर किसीमें या किसी चीजमें कौन नहीं हो सकता
- नवेम्बर १७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७આજે પ્રાતઃકાળના ભજનમાં હતું કે ઈશ્વર આપણને કદી ભૂલતો નથી. આપણે તેને ભૂલી જઈએ છીએ એ જ ખરું દુઃખ છે.
- ફેબ્રુઆરી ૨૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૫जो मनुष्य शरमके मरे विवेक बताता है वह सचमुच अविवेकका प्रयोग करता है
- नवेम्बर १०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६What is learnt by rote is of as little value as the parrots recitation of Ramanama.
- June 12, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 435.Education which does not mould character is wholly worthless.
- January 7, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.सही धर्मको क्षेत्रकी मर्यादा नहीं होती है
- दिसम्बर ३१, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१झूठ आत्माको खा जाता है, सत्य आत्माको पुष्ट करता है ।
- २ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३Life is likened to a rose; because life, too, is full of thorns.
- May 7, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 431.If we do not forsake our ideal, the ideal will never forsake us.
- May 29, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.If you must be annoyed, why should it be at other peoples lapses, why not at your own?
- Thursday, September 26, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.He who obeys Gods Law will never care for any other law which is opposed to the Divine Law.
- July 25, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.એક ઈશ્વરમાં જ સંપૂર્ણ શક્તિ છે. તેથી ઈશ્વર પર જ હંમેશા ભરોસો રાખવો, માણસ પર કદી નહીં. (આઈઝાયા ૨૬-૪માંથી)
- માર્ચ ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૬True happiness does not come from obtaining what one likes. It comes from cultivating a liking for what one dislikes.
- March 16, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 413.ભૂલ કબૂલ કરવી તે સાવરણો વાપરવા જેવું છે. સાવરણો ગંદકી સાફ કરે છે, ભૂલનો સ્વીકાર બહુ ખપમાં આવે છે.
- ડિસેમ્બર ૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯Die and be saved.
- September 6, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.कविने कहा है कि विद्या रहित मनुष्य पशु समान है । यह विद्या कौन सी?
- ३० सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१Therefore, a satyagrahi will never seek rights; these will come to him unsought.
- August 5, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.What a pity that even though a man knows it, he still prefers to fall!
- Monday, October 7, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.जिसका जो कम करता है उसका वह सेवक है, नहीं कि जिसका नाम ही लेता है ।
- १४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१He who always treads only the path of Truth never stumbles.
- March 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.He who is unable to rule over himself can never really succeed in ruling over others.
- January 28, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.શરીરને બચાવવા માટે ઘણો ઉદ્યમ કરું છું, આત્માને ઓળખાવા એટલો કરું છું ખરો ?
- માર્ચ ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯He who thinks, speaks and acts with God as his witness, will never feel ashamed of doing the right thing.
- September 5, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 458.What matters to you the worlds praise or censure? Do what you think is your duty.
- January 10, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.एकके पास ईश्वर है, करोडके पास शैतान है, तो एक करोडसे डरे?
- २२ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७જેવી રીતે મને ખાવાપીવાનો હક છે તેવી જ રીતે મારું કામ મારી રીતે કરવાનો હક છે. આ જ સ્વરાજ છે.
- ડિસેમ્બર ૨૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯हम सब दीवाने हैं उनमें कौन किसको दीवाना कहे?
- नई दिल्ली सोम, ९ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३Being a slave to fear and selfishness is the worst form of slavery.
- May 19, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.પ્રતિક્ષણ અનુભવ થાય છે કે સમતાનાં ફળ મીઠાં છે.
- મે ૨૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩A man of knowledge attains peace only through renunciation.
- June 5, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.धर्म मनुष्य जीवनमें ओतप्रोत बने तब ही वह धर्म माना जाय, वह वस्त्र जैसी वासु नहीं है ।
- २४ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००मनुष्य अगर अपनी शक्तिके बाहर कम न ले तो गभराहटको स्थान ही नहीं रहता
- नवेम्बर २२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७The nectar of Ramanama brings joy to the soul and rids the body of its ailments.
- July 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.जब फिकर करने वाला ईश्वर है, तो हम क्यों करें?
- दिल्ली १४ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३७एक वचन भी सत्य है तो काफी है; असत्य वचन कितने भी हो निकम्मे हैं ।
- ३० जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५ધર્મપાલનમાંથી જે અધિકાર મળે છે, તે જ સ્થિર રહી શકે છે.
- ડિસેમ્બર ૧૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯संतोंकि वाणी सुनो, शास्त्र पढो, विध्वान हो लो, लेकिन अगर ईश्वरको हृदयमें स्थान नहीं दिया तो कुछ नहीं किया ।
- १९ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१९I have no disciples, being myself an aspirant after discipleship and in search of a guru.
- "What is Non-Violence?, Harijan, December 19,1936", CWMG, vol. LXIV, p. 152.આદર્શ વગરનો માણસ સુકાન વગરના વહાણ જેવો છે.
- માર્ચ ૧૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦When man smites, it is God who comes to our rescue.
- June 18, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.अज्ञान छुपाने से बढ़ता है । अज्ञान बताने से आशा कि जाय कि वह कभी न कभी कम होगा ।
- ११ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१જૂઠ આત્માને ખાઈ જાય છે, સત્ય આત્માને પુષ્ટ કરે છે.
- જુલાઈ ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭He alone who truly serves is a good householder. He goes on giving without expectation of return.
- November 3, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.Nothing is ever achieved without toil, that is without tapa.1 How, then, can self-purification be possible without it?
- January 17, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.यह पीछेका बताता है की सबकी कूंजी सत्यकी आराधनामें है सत्यकी उपासनासे सब चीज मिलती है
- जनवरी ७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४५९स्वच्छता जब भीतरी और बाहरी रहती है तब वह ईश्वरमयताको पहुंचती है
- आसाम मेलमें, जनवरी ८, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२दोषमें थोड़ा, बहूत क्या? दोष ही है । अन्यथा मानने में आत्मवंचना होती है ।
- सेवाग्राम शुक्र, ९ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०He who has everything but God on his side, has nothing.
- April 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.To have good thoughts is one thing; to act upon them is another.
- May 3, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.Let us think not of big things but of good things.
- October 8, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.Better to die once than to die daily.
- April 16, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.વાત એમ છે કે માણસ આવા વિચાર કરવા માગતો નથી. તેથી માને છે કે આવા વિચાર કરવાની ફુરસદ જ નથી.
- જાન્યુઆરી ૧૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૧A man without an ideal is like a ship without a rudder.
- April 13, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 436.The joy of life lies in divesting oneself of lifes cares.
- November 1, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.એક માણસે આજે આવીને કહ્યું : જો હું સાચી સેવા ન કરું તો જીવવામાં મને કશો રસ નથી.
- જૂન ૩૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭The hasty are ruffled; the slow and steady have composure.One sees the truth of this every moment.
- March 29, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 434.જે વસ્તુને વિષે ચિંત્વન થઈ શકે એમ નથી, તેને વિષે તર્કવિતર્ક કરવા એ ફોગટ નહીં તો બીજું શું?
- નવેમ્બર ૨૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮I am quite sure that the stoniest heart will be melted by passive resistance.
- Prabhu, R.K. and U.R. Rao (comps.), The Mind of Mahatma Gandhi, Ahmedabad: Navajivan Publishing House, 1967, p. 164.जो मजदुरी नहीं करता लेकिन खता है वह चोरीका अन्न खाता है
- नवेम्बर २७ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८मद्यपान मनुष्यको क्षण भर दीवाना बनाता है । मद उसे खा जाता और उसे पता भी नहीं होता है ।
- २९ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०४आवेश शांत होने पर ही जो कम किया जाता है वही फलदायी होता है ।
- मद्रास २२ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८The nearer we approach our ideal, the more truthful we become.
- May 2, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.जैसे हमारी पीठ दूसरा आदमी ही देखता हैं, हम नहीं, ऐसे ही हमारे दोष भी हम नहीं देखते हैं ।
- ५ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५६Because of our physical limitations, we cannot have a conception of the existence of God.
- August 28, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.I realized that the true function of a lawyer was to unite parties riven asunder.
- Gandhi, M.K., An Autobiography, Part II, Chapter XIV.He who talks in tune with the rhythm of life is never weary.
- March 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.व्यवहारमें जो काम न दे वह धर्म कैसे हो सकता है?
- ४ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१To remember God and forget others is to see God even in them.
- March 21, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 413.Meditation does not make one dull.
- July 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.अल्प या महादोष करना ख़राब है लेकिन उसे छिपाना और ख़राब है ।
- ११ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२The conduct of a few Indians was the measure of that of the millions of their fellow-countrymen.
- Gandhi, M.K., An Autobiography, Part IV, Chapter II.મનુષ્ય જો પોતાના ગજા ઉપરાંતનું કામ હાથ પર ન લે તો એને ગભરાટ રાખવાનું ક્યાંય સ્થાન જ ન રહે.
- નવેમ્બર ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭આંતરિક અને બાહ્ય સ્વચ્છતા ઈશ્વરપારાયણતાને પામે છે.
- આસામ મેલમાં, જાન્યુઆરી ૮, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧जिस वस्तुका चितवन हो नहीं सकता उसके बारेमें तर्क वितर्क करना फिजुल नहीं तो क्या ?
- नवेम्बर २५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८Religion is that which comprehends all. In other words, religion permeates life in all its aspects and at all times.
- February 4, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.A guru should be perfect. God alone is that.
- October 8, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.जिसे ईश्वरका सहारा है उसे पंगु मन्ना पाप समझा जाय ।
- मद्रास २९ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८Innocent and dreamless sleep is samadhi (meditation), yoga (concentration of mind) and selfless action. (Adapted from Vinobas letter).
- November 14, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.किसीकी महेरबानी मांगना अपनी आझादी बेचना है
- जनवरी २, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१ताजुब है कि आदमी बहोत दफा नहीं जनता है कि दुश्मन कौन और दोस्त कौन?
- १२ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९I decline to be slave to precedents or practice I cannot understand or defend on a moral basis.
- "The Shadow of Simla, Young India, July 21, 1921", CWMG, vol. XX, p. 409.जब मनुष्यके दिलमें पूर्ण प्रकाश होता है तो कोई रूकावट हमारे रस्तेमें रहती ही नहीं ।
- ८ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१शुद्ध ह्रदयसे निकला हुआ वचन कभी निष्फल नहीं होता
- जनवरी २४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०A person without attachment should have an inexhaustible fund of patience.
- January 16, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.जो मनुष्य किसीका भी बोज हलका करता है वह निकम्मा नहीँ है
- जनवरी ३०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१We have to make ourselves as nearly as possible like Him we want to reach.
- Wednesday, September 25, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.Irregularity never goes well with non-attachment.
- November 9, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.Man is truly known by the humility of his spirit.
- September 29, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.अपना दोष कबूल करना बड़ी मुसीबत है तो भी सिवाय इसके मैल निकलता नहीं ।
- १३ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९સાચું સુખ બહારથી નથી મળતું, અંતરમાંથી જ મળે છે.
- ડિસેમ્બર ૯, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭He who in his distress turns to God is not troubled by any fear.
- January 6, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.बगैर सत्संगके आत्मा सूक जाती है ।
- ३१ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०જે શિક્ષણની અસર આપણા ચારિત્ર્ય પર નથી પડતી, તે શિક્ષણ નકામું છે.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૭, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧યથાશક્તિ કોને કહેવાય ? પોતાની બધી શક્તિ જરાયે સંકોચ વગર વાપરવી તે. એવા શુભ પ્રયત્નમાં ઘણું કરીને સફળતા મળે છે.
- માર્ચ ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦જેનામાં આટલું ધૈર્ય નથી તે અહિંસા ન પાળી શકે.
- માર્ચ ૨૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૮Debts are redeemed by deeds, not by words.
- May 22, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.निर्दोष और निःस्वप्न निद्रा समाधि है, योग है, अनासक्त कर्म है(विनोबा के खतके आधारपर)
- नवेम्बर १४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६वीरता कोई एक ही मनुष्यका लक्षण नहीं है । सबमें है, लेकिन सब पहचानते नहीं हैं ।
- ३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१Man finds himself by losing his Self.
- July 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.What more do you want when the heavens are within you, and even God Himself?
- April 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.Justice needs to be tempered with generosity as much as generosity needs to be tempered with justice.
- October 23, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.મારી કૃપા તારે માટે પૂરતી થવી જોઈએ, કારણ કે મારું બળ દુર્બળતામાં જ પૂર્ણ થાય છે. (૨ કોર : ૧૨-૯)
- માર્ચ ૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૬परमेश्वर विश्वास रखना सबसे आसान होना चाहिये, लेकिन सबसे कठिन वही दीखता है ।
- १७ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१Non-violence is the first article of my faith. It is also the last article of my creed.
- "The Great Trial, Young India, March 23, 1922", CWMG, vol. XXIII, p. 114.जब सब कुछ ईश्वरका है, तब उसको क्या अर्पण करें?
- २० मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०Nothing turns out right so long as there is no harmony between body, mind and soul.
- August 2, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.મનુષ્ય પોતાના વિચારોનું પૂતળું છે.
- ડિસેમ્બર ૩૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦मनका मैल शरीरके मैलसे भयंकर है लेकिन शरीरका मैल भीतरी मैलकी निशानी होती है ।
- उरुली २४ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४पवित्रता परदेमें नहीं रहती उसे रक्षा ईश्वरकी ही चाहिये
- दिसम्बर १७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०માણસનો લોભ આકાશથી પણ ઊંચે જાય છે, પાતાળથી પણ નીચે જાય છે. એટલા માટે એને મર્યાદા હોવી જ જોઈએ.
- માર્ચ ૨૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૧Blind is not he who has lost his eyes, but he who hides his shortcomings.
- April 10, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 436.निराश[] आदमीको खाती है ।
- दिल्लीकी ट्रेनपर रवि, २५ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१सच्चा सुख बाहरसे नहीं मिलता है अंतर से ही मिलता है ।
- ९ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८संपूर्ण अहिंसामें द्वेषका संपूर्ण अभाव होता है
- दिसम्बर २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०The world may call us weak but we must not weaken our ideals.
- February 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.If I had no sense of humour, I would have committed suicide long ago.
- "Answer to Editor's Questions, The Leader, August 10, 1921", CWMG, vol. XX, p. 481.Man spoils matters much more by speech than by silence.
- February 5, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.આપણે છીએ કેમ કે ઈશ્વર છે. આ પરથી જ આપણે જોઈ શકીએ છીએ કે મનુષ્યમાત્ર, જીવમાત્ર ઈશ્વરનો અંશ છે.
- ફેબ્રુઆરી ૨૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૫विरोध आदमीको बनाता है ।
- दिल्ली ४ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५માણસ ભલે કોઈ શુભ નિશ્ચય પણ ન કરે, પણ વિચારપૂર્વક કરે તો તે કદી ન છોડે
- ફેબ્રુઆરી ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૪Ashram means a community of men of religion. I feel that an ashram was a necessity of life for me.
- Gandhi, M.K., Ashram Observances in Action, translated from the original Gujarati by Valji Govindji Desai.Evenmindedness is the best of all wisdom.
- June 22, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.મિથ્યા જ્ઞાનથી હંમેશા ડરતા રહેવું. મિથ્યા જ્ઞાન એ છે જે આપણને સત્યથી દૂર રાખે છે અથવા કરે છે.
- ડિસેમ્બર ૨, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭हिंसा त्याज्य है क्योंकि उससे [जो] लाभ होता लगता है, वह आभास है, नुकसान होता है वह कायमी है
- दिसम्बर २९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१Violence is the weapon of the weak; non-violence that of the strong.
- December 13, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.कोई शुभ निश्चय भी मनुष्य भले न करे लेकिन विचारपूर्वक जो निश्चय करे तो उसे कभी न छोड़े
- जनवरी १४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३When there is both inner and outer cleanliness, it approaches godliness.
- January 8, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.जब आकाश तेरेमें भरा है और ईश्वर तो उसमें है हि, तो तुझे और क्या चाहिये?
- २७ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८He who wishes to save time will never do a single unnecessary thing.
- July 24, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.नम्रताका ढोंग नहीं चलता, न सादगीका ।
- बम्बई १८११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०The light of knowledge can never dawn on the proud.
- Friday, August 30, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.If you die in jail, I shall worship you like a goddess.
- Patel, Ravjibhai M., Gandhiji ni Sadhana, Ahmedabad: Navajivan Prakashan, 1949, p. 206.खुबीकी बात है कि हम बाहरकी बातके बारेमें बड़ा परिश्रम करते हैं, अंतरके लिये कुछ ख्याल तक नहीं ।
- नई दिल्ली मंगल, १७ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३More people die of worry than of natural causes.
- April 15, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.How shall we please God, how praise Him? By serving His creature—man.
- June 3, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 434.નિર્દોષ અને સ્વપ્ન વગરની નિંદ્રા સમાધિ છે, યોગ છે, અનાસક્ત કર્મ છે. (વિનોબાના પત્રના આધારે)
- નવેમ્બર ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭अनास्क्तको अखूट [अटूट] धीरज होनी चाहिये
- सोदपुर जनवरी १६, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२हिंसक कार्यकी मर्यादा है और वह निष्फल हो सकता है अहिंसाकी मर्यादा है ही नहीं और कभी निष्फल नहीं जाती
- दिसम्बर ११, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९હું ક્યારે અને ઈશ્વર ક્યારે? એનો નિર્ણય કરવામાં જ્ઞાનની પરીક્ષા છે.
- જુલાઈ ૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭Not contrived but genuine laughter is true eloquence, and more effective than speech.
- May 16, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.Why should I depend upon anyone for my own affairs?
- April 29, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.अतिशयोक्तिकी जालमें से आदमी छुट नहीं सकता है ऐसा प्रतीत होता है ।
- सेवाग्राम मंगल, २० अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१मेरे धंदेके बारेमें मैं क्यों किसीपर निर्भर हूं?
- २९ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८The non-attached person cannot own anything.
- January 19, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 451.अगर हमारे पड़ोसी स्वच्छ नहीं हैं, तो हमारी निजी स्वच्छता पंगु है ।
- १ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१He who thinks of the suffering humanity, will not think of himself. Where has he the time?
- February 7, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 429.ઉતાવળા સો બાવરા ધીરા સો ગંભીર. - એ કહેવતનું સત્ય ક્ષણે ક્ષણે જોવામાં આવે છે.
- માર્ચ ૨૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૯Just as the universe is contained in the self, so is India contained in the villages.
- July 12, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 438.જે ધર્મ આ લોકની વાત સિવાય પરલોકની જ વાત કરે છે, તેને ધર્મ ન કહી શકાય.
- ડિસેમ્બર ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯सच्चा सेवक ही सदगृहस्थ है वह बदलेमें लेने की इच्छा न करते हुए देता ही है
- नवेम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७५कैसी दुःखकी बात है कि मनुष्य जानता है तो भी गिरना पसंद करता है?
- सोम, ७ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५Only he can be a leader who never loses hope.
- February 12, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.The same sage observes that where there is peace of mind there is inner strength which is unfailing.
- February 2, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.Outward peace is useless without inner peace.
- February 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 409.किसी औरकी गुलामीसे दहशत और स्वार्थकी गुलामी बदतर है ।
- १९ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०आदमको खुदा मत कहो, आदम खुदा नहीं; लेकिन खुदाके नूरसे आदम जूदा नहीं ।
- १८ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१९Man dies when he cuts himself off from the source of his being, not when the soul leaves the body.
- July 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.Whatever the crisis, the fire of love will overcome it.
- August 1, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.Noise does not overcome noise; silence does.
- May 6, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.A calculating mind cannot attain self-realization.
- June 12, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.उम्दा ख्याल खुशबू जैसा है ।
- उरुली २६ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४Keep all, lose all.
- Thursday, August 8, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.Good deeds let us do right now; the bad ones let us always keep on postponing.
- March 19, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 413.श्रद्धा उसका नाम है जो विरुद्ध निशानी होते हूए अचलित रहती है ।
- ५ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९Nobody progresses without opposition.
- September 1, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.જેની આંખો ફૂટી ગઈ છે તે આંધળો નથી પણ જે પોતાનો દોષ કાઢે છે તે આંધળો છે.
- માર્ચ ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦હિંસા દુર્બળનું શસ્ત્ર છે. અહિંસા સબળનું.
- ડિસેમ્બર ૧૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯One person has God on his side; millions have Satan on theirs. Must, therefore, one fear the millions?
- August 22, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.सेवककी सच्ची बेंक आम जनता है जो बेंक कभी टूटती नहीं
- सोदपुर, जनवरी ४, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१सौंदर्य चेहरेके रंगमें नहीं है लेकिन सत्यमें ही है
- दिसम्बर ४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८ईश्वर शक्ति ऐसी सत्ता है जिसके सामने लुछ भी टिक नहीं सकता
- मुंबई ५ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३Man cannot worship God and at the same time despise his fellow-beings. The two are irreconcilable.
- September 28, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.Sorrow is but another aspect of joy. Hence the one invariably follows the other.
- July 27, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.મનુષ્યજીવન અને પશુજીવનમાં ફરક શો ? એનો પૂરેપૂરો વિચાર કરવાથી આપણી ઘણી મુશ્કેલીઓનો નિવેડો આવી જાય છે.
- ફેબ્રુઆરી ૧૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૫जिसे न शांति है, न निश्चय, उसे ज्ञान कहांसे?
- सेवाग्राम १५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०मनुष्यकी प्रतिष्ठाउसके दिलमें-ह्रदयमें है, नहि की उसके मस्तिष्कमें यानि बुध्दिमें
- जनवरी ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१The Ganga flows in mans heart, yet he does not bathe in it, and remains unwashed.
- Friday, August 23, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.अकेलेपनमें जो लाभ है वह अनुभवसे ही सिद्ध हो सकता है ।
- ४ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९ભક્ત ભગવાનમાં લીન હોય છે.
- નવેમ્બર ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭મહેનત કર્યા વગર જે ખાય છે,તે ચોરીનું અન્ન ખાય છે.
- નવેમ્બર ૨૭ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮Whatever we do should be done not to please or displease anyone, but only to please God.
- July 19, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.Throughout my career at the bar I never once departed from the strictest truth and honesty.
- "Speech to Law Students, Colombo", CWMG, vol. XXXV, p. 309.अशांति और अधीरज दो व्याधि हैं और दोनों आयु हरण करते हैं ।
- २७ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०પ્રાર્થના હૃદયથી કરવી જોઈએ, શબ્દોથી નહીં. હૃદય વગરના શબ્દો નાકમાં છે.
- ડિસેમ્બર ૨૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦A right cause never fails; A true word never hurts in the end.
- January 23, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.आजका दिन सुवर्णाक्षरमें लिखने योग्य है क्योंकि ६ अप्रेल, १९१९ को हिंदुस्तानने अपनेको पहचाना ।
- दिल्ली ६ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५Ramanama helps only those who fulfil the conditions for its recitation.
- April 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.It is easier to cross the ocean between countries than to span the gulf between individuals or people.
- November 6, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.કૃત્રિમ નહીં પણ સ્વાભાવિક હાસ્ય ભવ્ય ભાષણ છે અને ભાષણથી વધુ અસર કરે છે.
- મે ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩એકાંતની ખૂબી જેણે જાણીજોઈને એનું સેવન કર્યું છે તે જ જાણે છે.
- જુલાઈ ૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭"The true function of journalism is to educate the public mind."
- "Talk with an English Journalist, Harijan, September 29, 1946", CWMG, vol. LXXXV,p. 371.તમારા ગજવામાં જેપૈસો છે, તે ક્યાંથી અને કેવો તીરે આયો, તે પોતાની જાતને પૂછો. આ ઘટનાથી ઘણું શીખી શકશો.
- નવેમ્બર ૨૯ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮Is not death, in every case, a release from too much suffering? If so, why lament when it comes?
- May 6, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 431.रामके नामसे जो रावणका कम करे, उसे या कहें?
- १३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१સૌંદર્ય ચહેરાના રંગમાં નથી, સત્યમાં જ છે.
- ડિસેમ્બર ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮સંતોની વાણી સાંભળો, શાસ્ત્ર વાંચો, વિદ્વાન થઇ જાઓ, પણ જો ઈશ્વરને હૃદયમાં સ્થાન ન આપ્યું તો બધું ફોક છે.
- ડિસેમ્બર ૧૯, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૮मौतकी धमकीसे क्या डरना क्योंकि वह तो सदाकी है ही ।
- नई दिल्ली रवी, ८ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२આત્માને ઓળખવાથી, તેનું ધ્યાન ધરવાથી અને તેના ગુણોને અનુસરવાથી માણસ ઊંચે ચડે છે. એથી ઊલટું કરવાથી નીચે પડે છે.
- માર્ચ ૨૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૮आत्मारूपी सही धनको पहचानना न उसकी रक्षा करता है वह और किस चीजकि रक्षा क्र सकता है?
- २९ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४If there is any hope for a man, whose mind remains impure in spite of himself, it is Ramanama.
- January 21, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 407.Great caution is necessary when a man represses his nature.
- July 22, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.કાળના વચનનો ફલિતાર્થ એ છે કે એટલું પોતાનું આયુષ્ય વધારે છે.
- જૂન ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૬Fear vanishes only with the annihilation of the ego.
- August 18, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.सत्याग्रही कहलाने से मनुष्य सत्याग्रही नहीं बनता है । शुद्ध सत्यका पालन करने से ही मनुष्य सत्याग्रही बनता है ।
- २५ अप्रेल, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५५We cannot act or even think, in two opposite ways at the same time.
- May 1, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.कंठस्थ ज्ञानकी इतनी किम्मत है जितनी तोताके रामनामकी ।
- १२ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१It is not man that enjoys pleasures; it is pleasures that enjoy man, which is to say they consume him.
- November 7, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 443.આમ હોવા છતાં માણસ સુખીદુઃખી શા માટે થાય છે ?
- જાન્યુઆરી ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૧नानक कहते हैं आदमी जितना भोग भोगता है इतना ही दुःखी होता है ।
- १३ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९६सादगी बनाने से नहीं बनती, स्वाभावमें होनी चाहीये ।
- सेवाग्राम मंगल, १३ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०Sweet are the fruits of patience.
- April 28, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.Mans capacity for self-deception is amazing.
- Tuesday, August 6, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.If there is a soul, then surely the Supreme Soul (God), too, exists.
- August 27, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.He who wants to drink of the nectar of Ramanama must purge himself of lust, anger and the like.
- June 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.There can be no safety for us save in the lap of God.
- February 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.When a man has lost patience, he should resort to silence, and speak only when he has calmed down.
- April 17, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.ઈશ્વર આપણો આશ્રય છે, એ જ આપણું બળ છે અને તે જ આપત્તિને વખતે આપણી રક્ષા કરે છે. (સામ ૪૬-૧)
- માર્ચ ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૬भोगको मनुष्य नही भुगतता है लेकिन भोग मनुष्यको भुगतता है अर्थात खा जाता है
- नवेम्बर ७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६There is not a single moment in life when man cannot serve.
- April 3, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.Indigestion, etc., are not the only causes of fever. Anger, too, can bring it on.
- September 21, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.जिस त्यागमें दुःख है, वह त्याग नहीं है ।
- २३ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८बगैर भीतरकी शांतिके, बाहरी शांति कुछ कामकी नहीं है ।
- सेवाग्राम ९ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९He who is shamed into acting correctly is not acting correctly at all.
- November 10, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.जैसे हम आदर्शके नजदीक पहोंचते हैं, ऐसे हम सच्चे बनते हैं
- शिमला २ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९स्वार्थ हमेशा हमे चिंता ग्रस्त करता है ।
- पूना ३ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२જે દુઃખી જનોનો જ વિચાર કરે છે તે પોતાનો વિચાર નહીં કરે. તેને એટલો સમય ક્યાંથી હોય ?
- ફેબ્રુઆરી ૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩It is well not to yield to desire. Once we give in restraint becomes difficult if not impossible.
- January 27, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.भीतरका सौन्द्र्यदेखो तो बाहरका फीका लगेगा ।
- नई दिल्ली रवी, १५ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३ईश्वर सर्वत्र है, इसीलिये वह हमसे पत्थर, वृक्ष, जंतु, पक्षी, पशु इ[त्यादी] के मार्फत बोलता है ।
- पूना २४ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१जो हमारे हृदयमें है उसे कभी-न-कभी बाहर निकलना ही है ।
- २३ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०सत्यके साथ दृढ़ता होनी ही चाहीये ।
- मद्रास २६ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८મને તો ઈશ્વરને વિષે હરઘડીએ પ્રતીતિ થાય છે, પછી કોઇથી ડરવું શા માટે?
- જૂન ૨૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૭जो श्रध्दा कभी बुझती नहीं है मगर बढ़ती है वह अनुभवका रूप लेती है
- दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८व्याधिके डरसे जितने आदमी मरते हैं, उनसे कम व्याधिसे मरते हैं ।
- ७ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९जिह्वा कर्जा नहीं भारती है, लेकिन कार्य ही भरता है ।
- २२ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०No joy can compare with the joy of doing ones duty in silence.
- June 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.When our outer life gets the better of our inner life, the result is bound to be bad.
- April 19, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.Pride devours man completely. The truth of this can be realized by everyone every moment.
- May 18, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.It is more than severe punishment to compel a man to do something which he does not understand.
- November 23, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 445.जब आदमीका धैर्य छूट गया है तब मौन लेकर शांत होने पर ही बोलें ।
- १७ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८He who has God for his companion, why need he be sorrowful or anxious or look for another companion?
- March 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 413.जिसके साथ सब कुछ है लेकिन ईश्वर नहीं उसके पास कुछ नहीं ।
- दिल्ली १० अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६६He who loses patience, loses Truth as well as Non-violence.
- July 16, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.आदमी अपना दुःख हंसकर भूल सकता है रोकर बढ़ाता है ।
- दिल्ली १ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५Untruth corrodes the soul; truth nourishes it.
- July 2, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.विद्या वही है जिससे मनुष्य अपनेको पहचाने । इसका अर्थ आत्मज्ञान हुआ ।
- १ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१સાચું કહીએ તો ડર એક જ વાતનો હોવો જોઈએ. અને તે ગંદું અથવા જૂઠું કરવાનો.
- મે ૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨The way to know what Gods work is is heartfelt prayer and corresponding action.
- Thursday, October 3, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.जो नियमोंको जनता नहीं है और उसका पालन नहीं करता है वह लोक-सेवक हो ही नहीं सकता ।
- १० अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२જે અર્થશાસ્ત્ર નીતિથી અલગ કે તેનું વિરોધી હોય, તે અમાન્ય છે, ત્યાજ્ય છે.
- સરાની કે ગોહાટી, જાન્યુઆરી ૧૨, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧માણસ જયારે એક નિયમ તોડે છે તો બીજા આપોઆપ તૂટી જાય છે.
- મે ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩श्रध्धासे मनुष्य पहाड़ोंको उलुंघन करता है ।
- ७ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८सच कहें तो डर एक ही होना चाहिये । वह है मैला या झुट करने से डरना ।
- ८ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७जैसे मुझे खाने पहन्नेका हक़ है उसी तरह मुझे अपना कम अपने ढ़ंगसे करने का हक्क है वही स्वराज है
- दिसम्बर २०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०Meditation makes one strong and lucid.
- July 12, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.श्रद्धामें निराशाको कोई स्थान नहीं है ।
- ३ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१કાચું ધાન ફેંકી દેવા લાયક હોય છે. એવું જ કામનું પણ સમજવું.
- મે ૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨जैसे हम अपने धर्मको आदर देते हैं ऐसे ही दूसरे धर्मको दें ー मात्र सहिष्णुता पर्याप्त नहीं है ।
- २७ नवम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१७He who is face to face with God does not speak, cannot speak.
- August 4, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.ईश्वरमाय जीवन कभी मुश्किल नहीं है ।
- दिल्ली ११ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६६The greatness of a person lies in his heart, not in his head, that is, intellect.
- February 3, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.I say that he is the greatest artist who leads the best life.
- "Interview to Dilip Kumar Roy", CWMG, vol. XXIII, pp. 193-194.He alone can be a true satyagrahi who knows the art of living as well as of dying.
- March 14, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.अहिंसा सत्यादी स्वयं प्रकाश है । अगर नहीं है तो वह नकली वस्तु है ।
- २२ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३આદર્શ એક વસ્તુ છે, તેનું પાલન એ જુદી જ વસ્તુ છે. લખ્યું : ૧૫-૪-૪૫
- માર્ચ ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૦The human body is like a musical instrument. Any note that is desired can be struck on it.
- September 4, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.કોઈની મહેરબાની માગવી એટલે આપણી સ્વતંત્રતા વેચવી.
- ફેબ્રુઆરી ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩जो बुरे खबरसे घभराता नहीं है, वह अच्छे खबरसे फूलेगा नहीं ।
- १० मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९सितारोसे भरा हूआ आकाश और ईएसआई ही खूबीओंसे भरा हूआ भीतरी आकाश से बढ़कर दूसरा क्या आश्चर्य चाहीये?
- ६ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२How wrong it is to ask others to be clean when we ourselves remain unclean!
- February 12, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 429.He who does not know himself is lost.
- September 3, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.संगीत गलेसे ही निकलता है ऐसा नहीं । मनका संगीत है, इंद्रियोंका है, हृदयका है ।
- २२ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१He who is afraid of peoples censure will never be able to do anything worth while.
- Sunday, August I8, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.Merit lies in fighting alone, be the opponent one or many.
- October 30, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 463.All activities that are born of one and the same seed merge into one another.
- March 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.An egoistical utterance should always be regarded as false.
- March 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.शुभ वस्तु आदमी मनसे नहीं छोडता है, लेकिन मित्रोंके खातर छोडता है तब योग्य या योग्य?
- पंचगनी २६ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९By donning the garb of religion, vice does not become virtue nor does a wrong cease to be wrong.
- October 5, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.કામનાને ન સંતોષવી એ સારું છે. પણ શરૂ કર્યા પછી તેને રોકવી અસંભવિત નહીં તો મુશ્કેલ તો છે જ.
- જાન્યુઆરી ૨૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩अगर एक आदमी भी संपूर्ण हो सकता है तो सब हो सकते है ऐसे मानना ही न्याय है ।
- रवि, ६ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५क्या मौत हर हालतमें अति दुःखसे मुक्ति नहीं है? अगर हैं, तो शोक क्यों?
- ६ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७दुःखके समय जो भगवानका दर्शन करता है, उसे कोई भय नहीं लगता है
- सोदपुर, जनवरी ६, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१સર્વને ધારણ કરે તે ધર્મ, એટલે કે ધર્મ દરેક અવસ્થામાં ને દરેક સમયે જીવનમાં ઓતપ્રોત છે.
- ફેબ્રુઆરી ૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩जब मनुष्य मुझे मारता है, तब ईश्वर सहाय करता है ।
- १८ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२पवित्रता बाहरकी रक्षा मांगती ही नहीं है
- दिसम्बर २६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०Experience is daily growing upon me that everything is attainable through silence.
- June 20, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 436.Such being the case, where is the sense in making merry or becoming arrogant?
- June 30, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 459.વિકારી વિચારો પણ બીમારીની નિશાની છે. એટલા માટે આપણે બધા વિકારી વિચારોથી દૂર રહેવું.
- ડિસેમ્બર ૨૭, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૯Religion is no religion if it becomes mechanical.
- September 23, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.શુદ્ધ હૃદયમાંથી નીકળેલું વચન કદી નિષ્ફળ નથી થતું.
- જાન્યુઆરી ૨૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨To a starving person, God will appear in the form of bread alone.
- November 30December 3, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 446.पo [प्र]थम सेवा पेखाना सफाई है ।
- पंचगनी २७ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९गंगा जलको छोडकर प्यास मिटाना और ईश्वरको छोडकर आत्म तृप्ति करना सरिखा असंभव है ।
- नई दिल्ली शनी, ३१ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२Living with God there are no difficulties.
- April 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.नरसिंह महेता कहता है मैं करता हूं, ऐसा कहना ही अज्ञानताकी परिसीमा है । इसके ध्यानमें अनासक्तिकी कूंजी है ।
- १२ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२हमारी स्थितिके कर्ता हम ही हैं ।
- १ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१विभूतिके कारण अमर होना बड़ी बात नहीं है ।जो रोजके कार्यमें अपना धर्म पूरा बजाता है वह विशेष है ।
- ९ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९Vice flourishes in darkness. It vanishes in the light of day.
- October 21, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.सबल ही क्षमावन हो सकता है बलहीन दण्ड देने में असमर्थ है इसलीये वह क्षमावान हो ही नहीं सकता है
- सरानी या गोहती जनवरी ११, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२प्रार्थनाके लिये ह्रदय आवश्यक है, वाचा नहीं बगैर ह्रदयकी वाचा निरर्थक है
- दिसम्बर २५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०The soul dries up without the company of the good.
- May 31, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.सब शिक्षक बने तो शिष्य कौन बनेगा? इसलिये हम सब शिष्य बनें ।
- दिल्ली १३ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६६Slavery to the environment dulls a mans mind.
- February 20, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.सिवाय ईश्वरकि गोदके हमें और कहीं सलामती हो ही नहीं सकती ।
- पूना २७ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१આઈઝાયા ૪૧-૧૦માં કહે છે : ડરો નહીં, કેમ કે પરમાત્મા તમારી પાસે જ છે.
- માર્ચ ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૬ईश्वरके बाहर हमें कोई हस्ति ही नहीं है ।
- पूना २६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१गुरु संपूर्ण होना चाहिये । वह तो ईश्वर ही है ।
- ८ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१We must always listen to criticism of our faults and failings, never to our praises.
- July 5, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.जिस तालीमका असर हमारे चरित्रपर नहीं होता है वह कुछ कामकी नहीं है
- सोदपुर, जनवरी ७, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१One is a servant of him for whom one works, not to whom one pays only lip service.
- June 14, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.दूसरोंके लिये जो उपदेश योग्य लगता है, वही अपने लिये योग्य लगता है, सो कैसे होता होगा?
- २५ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८When man realizes himself, he is saved.
- April 18, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 452.Pure thought is so subtle and yet so powerful a thing that it becomes all-pervading.
- June 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 459.यह कितनी गलत बात है कि हम मैले रहें और दूसरोंको साफ रहने की सल्लाह दें ?
- जनवरी १२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३Selfless action is a source of strength, for such action means the worship of God.
- January 19, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.हरेक प्रवृत्ति जिसकी उत्पत्ति एक ही बीजसे होती है, सब एक-एक-में मिल जाती है ।
- उरुली २७ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४Many things are wrought by patience, even as they are spoilt by impatience.
- Monday, August 12, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.અગ્રણ છુપાવવાથી વધે છે. અજ્ઞાન બતાવવાથી આશા રહે છે કે એ ક્યારેક પણ ઓછું થશે.
- જૂન ૧૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૫जैसे पवित्रताका ऐसे सब गुणोंका । अहिंसाकि परीक्षा हिंसाका सामना करने में होती है ।
- २० अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३Purity is tested only when it is pitted against impurity.
- October 19, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.When the self dies, God fills the void.
- May 16, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.The way of peace is open to her. Her freedom is assured if she has patience.
- "War or Peace, Young India, May 20, 1926", CWMG, vol. XXX, p. 461.જે ભગવાનમાં લીન રહે છે, તે ભગવાન સિવાયના કશામાં કે કોઈ ચીજમાં લીન ન રહી શકે.
- નવેમ્બર ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭दूसरोंके दोष ही देखना अपने गुणोंको देखने से भी नीच है ।
- १५ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२Only he is worthy to mete out punishment whose judgement is infallible. Who but God can be such?
- October 24, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.हरेक आदमीको अपना मूल ढुंढना चाहीये ।
- नई दिल्ली २ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२अनासक्तिके साथ अनियमितताका मेल कभी नहीं जमता है
- नवेम्बर ९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६ताज्जुब तो यह है कि जानत हूए कि सच्चा सुख कहां है आदमी जूठके पीछे जीवन देता है ।
- पंचगनी १८ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८सब अपने समयपर वृध्द होते है एक तृष्णा हमेशा युवा ही रहती है
- नवेम्बर ८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६How shall we dispel this darkness of egoism? By the light of uttermost humility.
- July 26, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.मनुष्य अपनेको कैसे धोखा देता है, इसको मैं प्रतिक्षण पाटा हूं ।
- ३१ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५९When ‘I and when God? In determining this lies the test of wisdom.
- July 6, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.I strive hard to preserve my physical body. Do I take the same pains to know my soul?
- April 7, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 435.इसलिये सत्याग्रही कभी अधिकार ढुंढ़ेगा नहीं अधिकार उसे ढुंढ लेगा ।
- ५ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५When attachment is present, the performance of even a pure deed involves manipulation.
- June 17, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.अगर हरेक हृदयमें ईश्वर है तो हम किसका तिरस्कार करें?
- २२ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४A poet has said that a man without knowledge is like an animal. What is that knowledge?
- September 30, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 460.અનાસક્ત વ્યક્તિને ક્યારેય ગુસ્સો આવવો નહીં જોઈએ.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૧૭, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૨अनासक्तिकि एक परीक्षा है कि मनुष्य राम नाम लेकर सोने के समय एक क्षणमें सो सकता है ।
- ११ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०२बात यह है कि जीवन संगीतमय होना चाहिये, तब हलन-चलन इ[त्यादी] सब वर्तनमें माधुर्य ही होगा ।
- २३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१A person without attachment should under no circumstances give way to anger.
- January 17, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 451.Inner strength grows by prayer.
- Saturday, September 14, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.No man is worthless who lightens anyones burden even the least bit.
- January 30, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.સત્યના દર્શન માટે સંતોના ચરિત્ર વાંચવા અને તેનું મનન કરવું જરૂરી છે.
- ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૭The common people are a devoted workers real bank, and this bank never fails.
- January 4, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.Alcohol maddens a man for the moment, but pride devours him completely and he is not even conscious of it!
- October 29, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 463.To mistake selfishness for selflessness is like mistaking a jackal for a lion.
- October 17, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.हिंसा दुर्बलका शस्त्र है अहिंसा सबलका
- दिसम्बर १३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९માણસની પ્રતિષ્ઠા તેના દિલમાં -હૃદય છે, નહીં કે તેના મગજમાં એટલે કે બુદ્ધિમાં.
- ફેબ્રુઆરી ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩हम बड़ी बातोंको न सोचें, अच्छी सोचें ।
- ८९ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५जो मातृभाषाकी अवगणना करता है वह अपनी माताकी करता है ।
- १३ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९बगैर समझके न कुछ करना न पढना ।
- सेवाग्राम गुरु, २२ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१સાચા ધર્મને ક્ષેત્રની મર્યાદા નથી હોતી.
- ડિસેમ્બર ૩૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦विचारको [लौह]खंडकी दीवारको भी भेदता है ।
- नई दिल्ली ५ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२हम है क्योंकि ईश्वर है इसीसे हम देखते है कि मनुष्य मात्र, जीवमात्र है ईश्वर का अंश है
- जनवरी २४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६४ઇચ્છ આનેક પ્રકારની હોય છે: શુભ, અશુભ અને શક્ય. શુભ અને શક્ય ઈચ્છાને જ મનમાં સ્થાન હોવું જોઈએ.
- જૂન ૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૪अनासक्तको कभी क्रोध होना ही नहीं चाहिये
- सोदपुर जनवरी १७, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२What distinguishes man from animals ? Comprehensive thinking on this question will solve a lot of our problems.
- February 18, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 430.Man is the image of his thoughts.
- December 30, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 449.What is it, if not futile, to argue about something which is beyond thought?
- November 25, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 445.A good thought is like fragrance.
- March 26, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.It is very difficult to confess ones error; but then there is no other way of cleansing oneself.
- May 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.મનુષ્ય કોઈ સત્તાનો તાબે રહેતો હોય એનો અર્થ એ છે કે તે વ્યક્તિગત સ્વાતંત્ર્યની કિંમત ચૂકવી રહ્યો છે.
- ડિસેમ્બર ૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮When a man sleeps under the sky, who can rob him?
- April 2, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.Trust ye in the Lord for ever: for in the Lord Jehovah is everlasting strength. Isaiah, XXVI. 4.
- March 4, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 432.The greater mans realization of the Self, the greater his progress.
- Thursday, September 19, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.जो हमेशा सत्यके पथपर ही चलता है वह कभी गिरता नहीं ।
- ९ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२પોતાના દોષ આપણે જોવા નથી ઈચ્છતા, બીજાના દોષ જોવામાં આપણને મજા પડે છે. ઘણાં દુઃખો તો આમાંથી પેદા થાય છે.
- માર્ચ ૨૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૧It is strange that we toil so much over externals without a care for what lies within.
- Tuesday, September 17, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.इससे भी आश्चर्य यह है कि हम जानते हैं कि हम भी मरनेवाले तो है इसलिये ख्वार होते हैं ।
- ३१ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४२१देवके कोई भी नाम हों, लेकिन उसमें देवके गुण हों तो हम उसे अवश्य नमस्कार करें ।
- १२ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७Why fear death when the threat is ever present?
- Sunday, September 8, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.प्रवृत्ति मात्र आत्माके विकासके लिये है या होनी चाहीये । और आत्माविकासमें ईश्वर दर्शन छिपा है ।
- २७ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००नंगोंको कपड़ा देकर उनकी नदामत क्या करना ? उनको काम दो जिससे वह निजी परिश्रमसे कपड़ोंके लिये धन पैदा करे
- दिसम्बर १ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८Never should we make the mistake of imagining that a wrong can be classified as big or small’.
- September 1, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 458.सब रखो, सब खोवो ।
- सेवाग्राम गुरु, ८ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०मनुष्य अकेला कुछ नहीं है, लेकिन जब वह ईश्वरका बनता है, तब सब कुछ होता है ।
- १४ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३વખત આવ્યે, બધાં વૃદ્ધ થાય છે. એક તૃષ્ણા હંમેશાં જુવાન રહે છે.
- નવેમ્બર ૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬क्रोधावेशमें आदमी अपना नुकसान करता है, उसका पुरावा [प्रमाण] रोज मिलता है ।
- १५ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९ખુશ કરવા તો ખુદને, ખુશામત કરવી તોયે તેની, તો આપણે બધી ઝંઝટ અને ચિંતાથી મુક્ત થઈ જઈશું.
- જૂન ૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૪Who can eat with an easy mind so long as even a single person starves for want of work?
- November 28December 3, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 445.सत्य ईएसआई चीज है जो कहने में आदमीको बार-बार सोचकर बोलना पड़ता है ।
- ४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१हम शरीरधारी होने के कारन परमात्माकि हस्तीकि कल्पना नहीं कर सकते हैं ।
- २८ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७જે માનસ એક વસ્તુ સમજી નથી શકતો, તેને તે કરવાની જબરદસ્તી કરવી એ સખતમાં સખ્ત સજા છે.
- નવેમ્બર ૨૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭अवगुण अंधेरेमें फलता है, प्रकाशमें गैब [गायब] हो जाता है ।
- २१ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३श्रध्धासे मनुष्य क्या नहीं कर सकता? सब कुछ कर सकता है ।
- ६ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८ईश्वरको पहचानना है तो स्वार्थ और भयको छोडना ही है ।
- नयी दिल्ली सोम, २६ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१It is possible to endure a diseased body, but not a diseased mind.
- October 13, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.जो मनुष्य एक वस्तु दिलसे मानता है वह सर्वथा अनुचित है तो भी उसकी दृष्टिसे सही है ।
- ६ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८अपनी एब हमेशा सुनें, अपनी स्तुती कभी न सुनें ।
- ५ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३He who doubts the existence of God perishes.
- September 7, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 458.जैसे विचार करता हू मालुम होता है कि हृदयसे, ज्ञानसे लिया हुआ रामनाम सर्वग्याधिका निवारण है ।
- उरुलीकांचन २२ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४By whatever name God be called, if there be godly attributes, we must surely bow to Him.
- May 12, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.नहि असत्य सम पातक पुंजा, गिरि सम होइ कि कोटिक गुंजा - तुलसीदास
- ७ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१जो मनुष्य कभी निराश नहीं होता है, वही सरदारी क्र सकता है ।
- सेवाग्राम १२ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०One perfect man can dispel untruth even though the untruthful be legion.
- December 10, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.जो जीना नहीं जानता है वह मरना कैसे जाने?
- ३१ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०४जैसे अनुभव लेता हूं, पाता हूं कि आदमी अपने-आप अपने सुख दुःख का कारण है
- जनवरी ११, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४५९Selfishness and fear must go if one is to realize God.
- Monday, August 26, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.जो ईश्वरको भूलता है वह अपने को भूलता है ।
- २६ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७He alone knows the charm of solitude who has deliberately taken to it.
- July 9, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 438.जब हमारे हृदयमें ईश्वरका वास हो जा[ता] है, हम न ख़राब विचार कर सकते [हैं], न खराब काम ।
- ७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१માણસને એવી ટેવ છે તે પોતાના દોષો ભૂલી જાય છે અને બીજાના જુએ છે, અને પછી નિરાશા જ રહે છે.
- જૂન ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૬જે વ્યક્તિ શરીરશ્રમ કરી શકે છે તેને માટે સદાવ્રત ખોલવું એ પાપ છે. તેમને કામ આપવું એ પુણ્ય છે.
- ડિસેમ્બર ૨ડિસેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૮प्रतिक्षण अनुभव होता है कि समताके फल मीठे होते हैं ।
- २४ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५९પોતાને ઓળખવાને માટે માણસે પોતામાંથી બહાર નીકળી તટસ્થ બનીને પોતાને જોવો જોઈએ.
- જાન્યુઆરી ૨૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩અહિંસા મારફતે સ્વતંત્રતા મેળવવાનો એક જ માર્ગ છે. મરીને જીવીએ, મારીને કદી નહીં.
- માર્ચ ૧૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૭જમીનનો માલિક તો તે જ છે જે તેના પર મજુરી કરે છે.
- જાન્યુઆરી ૨૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨देहाती दृष्टीसे हिंदुस्तानका विचार करें, तो बहूत सी चीजें जो हम करते हैं निकम्मी मालुम पड़ती हैं ।
- १४ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४સાચો સેવક જ સદ્દગૃહસ્થ છે. તે બદલામાં લેવાની ઈચ્છા ન કરતાં, આપવામાં માને છે.
- નવેમ્બર ૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬अगर हम दुःखले समय भी ईश्वरकी हाजरीको पहचान सके तो हमारे लिये खेर है ।
- नई दिल्ली बुध, १८ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३I could not be leading a religious life unless I identified myself with the whole of mankind.
- "Discussion with Christian Missionaries, Harijan, December 24, 1938", CWMG, vol. LXVIII, p. 201.अनासक्तिकी पराकाष्ठा गीता की मुक्ति है और वही अर्थ हम ईशोपनिषत् के पहले मंत्रमे पाते है ।
- २२ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४२०I know that war is wrong, is an unmitigated evil. I know too that it has got to go.
- "My Attitude Towards War, Young India, September 13, 1928", CWMG, vol. XXXVII, p. 271.ध्यानावस्थित दृढ़ बनता है, स्पष्ट बनता है ।
- १२ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३Purity asks for no external protection.
- December 26, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 448.How strange that a man very often does not know who is a friend and who is a foe!
- September 12, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 459.जो अर्थशास्त्र नीतिसे भिन्न या विरोधी है वह निषिद्ध है, त्याज्य है
- सरानी या गोहती जनवरी १२, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२આદર્શ વગરની મહેનત નિષ્ફળ છે, જેમ દિશા અથવા બંદર વગરનું વહાણ નિષ્ફળ ફર્યા કરે છે.
- મે ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩राई जैसा दोष छिपाने से पहाड़ जैसा बनता है जाहर करने से नाबूद हो सकता है
- नवेम्बर ४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६He who has not in him infinite patience cannot observe nonviolence.
- March 26, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 434.एक संपूर्ण पुरुष असत्यको दूर कर सकता है, भले असत्य कहने वाले अनेक हो
- दिसम्बर १०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९मनुष्य अपने विचारका पुतला है
- दिसम्बर ३०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१If you want to stand before God, you must go after shedding the robe of egoism.
- July 2, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 459.When the inner lamp burns, it illumines the whole world.
- April 24, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.The right that accrues from the performance of duty endures.
- December 18, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.A word uttered from a pure heart goes never vain.
- January 24, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.Opposition makes the man.
- April 4, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.દેશો વચ્ચેનો દરિયો ઓળંગવો સહેલો છે, પણ વ્યક્તિ વ્યક્તિ વચ્ચેનો કે પ્રજા પ્રજા વચ્ચેનો દરિયો તરવો અઘરો છે.
- નવેમ્બર ૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬If you see inner beauty, the outer will seem dull.
- Sunday, September 15, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.Just as drop by drop the lake fills up, so also every minute of sincere prayer nourishes the soul.
- July 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.Thousands like myself may die in trying to vindicate the ideal but Ahimsa will never die.
- "How can violence be stopped?, Harijan, May 19, 1946", CWMG, vol. LXXXIV, p. 127.કહેવાય છે કે ઘર બાળીને તીર્થ ન થાય પણ સાચું તો એ છે કે ઘર બાળીને જ તીર્થ થાય છે.
- નવેમ્બર ૧૮, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭To retaliate against the relatives of the co-religionists of the wrong-doer is a cowardly act.
- Prabhu, R. K, and U. R. Rao, eds., The Mind of Mahatma Gandhi(Ahmedabad: Navajivan Publishing House, 1967), p. 399.जो मजे छिपे कर्तव्यमें हैं, सो दूसरेमें नहीं हैं ।
- १० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१एककी क्रूरता दूसरेकी अक्रूरताका नाम लेती है ।
- २० अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८ધૈર્યથી, શાંતિથી શું નથી થઇ શકતું ! એનો અનુભવ જે લેવા માગે તેને રોજ મળી શકે.
- માર્ચ ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૭सीधा रास्ता जैसा सरल है ऐसा ही कठिन है । ऐसा न होता तो सब सीधा रास्ता ही लेते ।
- ११ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८सत्यरूपी क्षीरसागरमें असत्यरूपी जहरका एक भी बिंदु दाखल थाय (होवे) तो सारा क्षीरसागर जहरी बन जाता है ।
- ६ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५We are not yet in the midst of civil war but we are nearing it.
- Fischer, The Life of Mahatma Gandhi, p. 444.जो मनुष्य अपनापनकी रक्षा करना चाहता है उसे सब आर्थिक वस्तु गंवाने की तयारी रखनी है
- दिसम्बर १४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९I believe that there is no prayer without fasting and there is no real fast without prayer.
- "Its Implications, Harijan, February 11, 1933", CWMG, vol. LIII, p. 259.Faith is that which remains unshaken even in the face of advessity.
- May 5, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.आप मरने से आत्मा जागती है ।
- उरुली २९ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४जो मनुष्य एक वस्तु नहीं समजता है उसे करने के लिये उसे मजबूर करना सख्त सजासे अधिक सजा है
- नवेम्बर २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७अच्छा कम इसी क्षण करे बुरा कम हमेशा मुल्तवी करते रहे ।
- पूना १९ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३દેવનું નામ ગમે તે હોય, પણ જો તેનામાં ગુણ હોય તો આપણે તેને જરૂર નમસ્કાર કરવા.
- મે ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૨When a man lives in submission to authority, it means he is paying the price of personal freedom.
- December 5, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 446.अपनेको पहचानने के लिये मनुष्यको अपनेसे बाहर निकलकर तटस्थ बनकर अपने को देखना है
- जनवरी २९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६१आसक्तिसे किया हुआ शुद्ध काममें भी डावपेंच आते ही हैं ।
- १७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२जो जबरन गरीब है वह स्वेच्छासे गरीब नहीं बन सकता है
- दिसम्बर १६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०જે માણસ કોઈનોયે બોજો હલકો કરે છે તે નકામો નથી.
- જાન્યુઆરી ૩૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૩The breach of one rule inevitably leads to the breach of other rules.
- May 14, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.जो दुःखीओंका ही ख्याल करता है वह अपना ख्याल नहीं करेगा, उसको इतना समय कहांसे?
- जनवरी ७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६२जो मनुष्य अपने दुःखोको गाता है वह उसे चोगुना करता है ।
- सेवाग्राम १० फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९If the courage to endure everything with goodwill is lacking, goodwill becomes a lame virtue.
- May 11, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.ત્યાજ્ય વસ્તુ જો મફત મળે તોપણ ન લેવી તે કર્તવ્ય છે.
- નવેમ્બર ૧૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૭Renunciation is true enjoyment.
- January 30, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.An important matter loses importance if irrelevant. A relevant thing, though small, is of the highest importance.
- April 19, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 437.जैसे टीपे-टीपे सरोवर भरता है, ऐसे ही एक-एक मिनटकी हार्दिक प्रार्थना भी आत्माका कल्याण करती है ।
- पंचगनी १३ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३ईश्वरको तारणहार कहकर अपने आलस्यको बढ़ाते हैं तो गुनाह करते हैं ।
- २१ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०खूबी अकेले झूझने [जूझने]में है । विरोधि एक हो या अनेक ।
- ३० अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०४अहंभाव मिटने से ही बीक (डर) मिटती है ।
- १८ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७भीतर साफ़ है तो बाहर होना ही है ।
- दिल्ली ५ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६५तेरा रिश्तेदार हो तो भी उनके दोष छिपाने की कोशीश न कर ।
- २१ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२When we give something, we must give the truest part of ourselves.
- June 15, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.अमृत भी उसमें ज़हर पड़ने से ज़हर बन जाता है ।
- २३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२Non-attachment is put to real test only when there is full scope for our attachment to something.
- June 15, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 435.There is greater pleasure in not eating than in eating. Who has not experienced the truth of it?
- July 3, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 437.The benefit of solitude can be realized only by experience.
- May 4, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.પરિશ્રમ વગર એટલે કે તપ કશું જ થઇ શકતું નથી તો પછી આત્મશોધ કેમ થઇ શકે ?
- જાન્યુઆરી ૧૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨जो बहूत गिनती करता है, वह आत्म दर्शन नहीं कर सकता है ।
- १२ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१Life spent in service is the only fruitful life.
- Monday, September 16, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.आज प्रात:कालके भजनमें था ईश्वर हमको कभी नहीं भूलता, हम भूलते है वही सच्चा दुःख
- जनवरी २०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३He who has God on his side, has all.
- April 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 415.बगैर विचारके विचार मत करो, मत बोलो, मत लिखो, और विचार करो । इससे कितना समय बच सकता है ।
- ११ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४When we declare a strike to redress a wrong, we really cease to take part in the wrong.
- "Notes, September 22, 1921", CWMG, vol. XXI, p. 164.He who remembers God can afford to forget everything else.
- August 24, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.सजा तो वही क्र सकता है जिसके निर्णयमें निश्चय है । ऐसा ईश्वरके सिवाय कौन हो सकता है?
- २४ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३जिनको धर्मका ख्याल नहीं रहता है ऐसे दस प्रकारके लोगोंमें लोभी, कामी, क्रोधी और शराबी लोगोंको विदुर गिनाते है
- नवेम्बर ११, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६Faith is put to the test when the situation is most difficult.
- December 12, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.He who has divine endowment in him becomes thereby immortal.
- May 8, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.જે મનુષ્ય પોતાપણાની રક્ષા કરવા માગે છે, તેણે બધી જ આર્થિક વસ્તુ ખોવાની તૈયારી રાખવાની છે.
- ડિસેમ્બર ૧૪, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯जिसको रोटी न मिलने से मरना है उसे तो ईश्वर रोटीमें ही देखने में आवेगा
- नवेम्बर ३० दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८जिसका मन हरेक हालतमें शांत नहीं रह सकता है वह शांत नहीं है, कैसे भी बाहरसे शांत लगे ।
- पूना २१ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१समुद्रमें कितना भी तुफान होता है तो भी समुद्र अपनी शांति नहीं छोडता है ।
- पूना २९ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९અનુભવ લેતો જાઉં છું તેમ જોઉં છું કે માણસ પોતે જ પોતાનાં સુખદુઃખનું કારણ છે.
- જાન્યુઆરી ૧૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૧A devotee is ever absorbed in God.
- November 16, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 444.Not to own our mistake is to repeat it and to commit the additional sin of concealing it.
- March 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.जो जीवनके सुरमें चलता है उसे कभी थकान नहीं होगी ।
- ८ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२श्रद्धा ही जिंदगीका सूरज है ।
- शुक्र, ४ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५He who forgets God, forgets himself.
- August 26, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.जो धर्म इस लोककी बातको छोडता है और परलोककी ही बात करता है वह धर्म नहि हो सकता है
- दिसम्बर १५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९ध्यानाव्स्थित होना, वह सूक्ष्म विचारकी निशानी है और विचारधारा शुद्ध और परिपक्व बनाती है ।
- ११ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१Sweet are the fruits of equanimity—the truth of this is experienced every moment.
- May 24, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 433.Confession of error works like a broom. The broom sweeps away filth; confession does no less.
- December 9, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.Non-violence in its dynamic condition means? the putting of one's whole soul against the will of the tyrant.
- "The Doctrine of the Sword, Young India, August 11, 1920", CWMG, vol. XVIII, p. 133.God and Satan cannot both occupy the throne of the heart.
- Thursday, September 12, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 509.જ્યાં મનુષ્યનું મન છે, ત્યાં તે છે; જ્યાં તેનો દેહ છે, ત્યાં નહીં.
- ધૂબરી જતાં બોટમાં, જાન્યુઆરી ૧૩, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧Moral strength does accrue from the reading of scriptures; but real freedom cannot be attained without enlightenment.
- February 1, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 428.जो आदमी रातको दिन बनाता है वह अनासक्त कैसे?
- १९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२Envy devours him who harbours it. He who is the object of envy remains unaffected, perhaps even unaware of it.
- May 29, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 434.शुद्ध विचार ऐसी सूक्ष्म वस्तु है और इतनी वेगवान वस्तु है कि व्यापक बन जाती है ।
- २७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२If one man can become perfect, it is but fair to assume that all can become so.
- Sunday, October 6, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.શારીરિક દુર્બળતા સાચી દુર્બળતા નથી. મનની દુર્બળતા જ સાચી દુર્બળતા છે.
- સોદપુર જતાં રસ્તામાં, જાન્યુઆરી ૩, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦जबतक शरीर, मन और आत्माके बिचमें मेल नहीं होता है कुछ भी कम सीधा नहीं बनता है ।
- उरुली २ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९शुद्ध ज्ञान धर्मग्रंथ पढ़ने से नहीं मिलता । शुद्ध ज्ञान सिवाय सद्गुणके असंभवित है ।
- २ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५एक चोरी है, एक चोरीमें मदद करता है, एक चोरीका इरादा करता है । तीनों चोर हों ।
- २ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९८આદમકો ખુદા મત કહો, આદમ ખુદા નહીં ; લેકિન ખુદાકે નૂરસે આદમ જુદા નહીં.
- ડિસેમ્બર ૧૮, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૮जिसका साथी ईश्वर है उसको दुख क्या, फिकर क्या, दूसरा साथी क्या?
- पूना २० मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३Mere confession of a wrong does not erase it. Whatever is possible must be done to undo the wrong.
- January 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.Every man should seek for the Source of his being.
- September 2, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 508.That which looks for mercy from an opponent is not non-violence.
- January 14, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.He who lacks peace and firmness cannot realize God.
- May 28, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.जिंदगी मजा करने के लिये नहीं है लेकिन किर्तारको पहचानने के लिये और जगत्की सेवाके लिये है ।
- १५ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४Chastity needs no purdah. It needs only Gods protection.
- December 17, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 447.Prayer needs a heart, not a tongue. Without the heart, words have no meaning.
- December 25, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 448.जो त्याग दिलसे नहीं होता है वह स्थिर नहीं रहता है
- सोदपुर, जनवरी ५, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१जिसने अपनापन खोया उसने सब खोया ।
- १० दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८आग्रह सत् होता है असत् भी-असत्से नहीं छूटता, सत् को नहीं छुता ।
- सेवाग्राम बुध, २१ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१किसीके विचार जाननेके की इच्छा न रखना, न उसपर अपना अभिप्राय बनाना अपना विचार स्वतंत्र रूपसे करना निर्भयताका लक्षण है
- दिसम्बर २१, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०The hardest heart and the grossest ignorance must disappear before the rising sun of suffering without anger and without malice.
- "Vykom Satyagraha, Young India, February 19, 1925", CWMG, vol. XXVI, p. 159.What shall we call a person who, in the name of Rama, acts like Ravana?
- June 13, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.मनुष्य जितना बोल क्र बिगड़ता है इतना ख़ामोशीसे कभी नहीं ।
- ५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९जिसका वर्तन पशु जैसा है वह पशुसे बदतर है । पशुका पशुत्व उसके लिये स्वाभाविक है मनुष्यका नहीं ।
- ९ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९मनुष्य वहां है जिघर उसका मन है, नहिं कि वहां जिघर उसका देह है
- जहाजमें घुबरी जाते हुए जनवरी १३, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२હે જીવ! તું જો અનાસક્ત છે; તો તારે ઘોંઘાટ અને મારપીટને પણ સહન કરવાં પડશે.
- આસામ મેલમાં, જાન્યુઆરી ૯, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧ईश्वरको याद करना दूसरोंको भूलना अर्थात् दूसरोंमें ईश्वरको देखना ।
- पूना २१ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३सादगीमें भलाई है, महत्त्व है, नहिं दोलतमें ।
- पूना ३१ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९Give all, gain all.
- Wednesday, August 7, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.सत्यके दर्शन बगैर अहिंसाके हो ही नहीं सकते । इसीलिये कहा है कि अहिंसा परमोधर्म: ।
- २१ नवम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१६कहते है घर जलाकर तीर्थ नहीं होता सही तो यह है कि घर जलाकर जी तीर्थ होता है
- नवेम्बर १८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७મૌનમાં સર્વાર્થસિદ્ધિ છે એવો અનુભવ વધતો જાય છે.
- જૂન ૨૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૬He who remembers everything else but forgets God, really remembers nothing.
- August 25, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.To see nothing but faults of others is even meaner than praising ones own virtues.
- October 15, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.જે માણસ શરમનો માર્યો વિવેક બતાવે છે તે ખરેખર તો અવિવેકનું પ્રદર્શન કરતો હોય છે.
- નવેમ્બર ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬राजा या रंक हरेक अपने धर्मका चौकीदार होता है । इसमें हर्ष क्या शोक कौन?
- ११ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९नानक कहते हैं मनुष्य औरतमें है और और्टर मनुष्यमें है । तो भी जगत में व्यभिचार क्यों चलता है?
- ७ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९५अगर तू ईश्वरके सामने खड़ा होना चाहता है, तो अहंकारका जामा उतारकर जा ।
- २ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३It follows from the foregoing that we would be thereby adding that much time to our span of life.
- June 22, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 436.આજકાલ બાઈબલના ફકરા વાંચું છું. આજે આ જોવામાં આવ્યું : શ્રદ્ધાપૂર્વક જે કાંઈ માગશે તે તમને મળશે. (મેથ્યુ ૨૧-૨૨)
- માર્ચ ૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૪૬જિંદગી મજા કરવા માટે નથી પણ કિરતારને ઓળખવા માટે અને જગતની સેવાને માટે છે.
- જુલાઈ ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૮To destroy something is easy. To build requires great skill and care.
- Saturday, August 10, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 506.What seems impossible is not always really so.
- August 21, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.जो मनुष्य किसी एक चीजपर एक निष्ठासे कम करता है वह आखिर सब चीज करने की शक्ति हासल करेगा ।
- ८ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४१८He who seeks refuge in Ramanama, has Ramanama installed in his heart and is duly rewarded.1
- May 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.अफवा[ह] सुनना नहीं, सुनना तो मानना नहीं ।
- ४ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६३He who wants to please all, will please none.
- June 1, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 434.अखबार पढ़ना आजकल मुसीबत है । सही खबर मिलती नहीं है । न पढ़ने से नुकसान नहीं है ।
- १९ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७माना कि दोनोंके साथ ईश्वर है तो कौन किससे डरे?
- २३ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७मौनमें सर्व अर्थ सिद्धि है ऐसा अनुभव बड़ता जाता है ।
- २० जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६२इस अहंकाररूपी अंधकारको कैसे निकलें? रजवत्होने तककी नम्रता रूपी प्रकाशसे ।
- २६ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४In faith there is no room for despair.
- October 3, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 461.By education I mean an all-round drawing out of the best in child and man-body, mind and spirit.
- "Criticism Answered, July 31, 1937, Harijan", CWMG, vol. LXV, p. 450.સુખમાં સુખ જોવું એ દુઃખ છે. દુઃખમાંથી સાચું સુખ જન્મે છે.
- મે ૧૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૩सच्चे भक्तके लिये कुछ भी अशक्य नहीं है
- नवेम्बर १५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७अपनेको धोखा देने की मनुष्यकी शक्ति अजीब है ।
- सेवाग्राम मंगल, ६ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०It appears that man cannot escape the snare of exaggeration.
- Tuesday, August 20, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.जो मनुष्य सबको खुश रखना चाहता है, वह किसीको खुश नहीं करेगा ।
- १ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५९No cutting off of heads becomes necessary in the presence of a living Demos.
- "How?, Harijan, October 6, 1946", CWMG, vol. LXXXV, p. 402.ऐसा होते हुए आदमी सुखी दुःखी क्यों होता है ?
- जनवरी १२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४५९સાચી વસ્તુની પાછળ સમય આપવો આપણને ખટકે છે, નકામી વસ્તુ પાછળ ખુવાર થઇએ છીએ અને ખુશ થઈએ છીએ.
- ડિસેમ્બર ૧૭, ૧૯૪૪, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૮, પા. ૪૦૮पर दुःखे उपकार करे तोये मन अभिमान न आणे रे अगर अंतर्यामी सब करवाता है तो अभिमान कैसे?
- २ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०१God is said to have four arms as well as a thousand. It shows that all this is mere imagery.
- Sunday, September 29, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.જિંદગી જો પ્રાણીસેવા માટે અને ઈશ્વરને ઓળખવા માટે હોય તો એને પવિત્ર રાખવી અને સંયમી રાખવી એ આપણી ફરજ છે.
- જુલાઈ ૧૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૮Non-violence, truth, etc., are self-luminous. They cannot be genuine otherwise.
- October 22, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 462.जो तेरेमें ही हे, उसे बाहर कहां ढुंढता है?
- पूना २५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१Nanak says : God dwells in every human heart, and so every heart is a temple of God.
- July 21, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.विभूतिमान अपनी विभूतिके कारण अमर होते हैं ।
- शिमला गुरुदेव जयंती, ८ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९Like a ship without direction or destination, labour without an ideal is fruitless.
- May 22, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 433.मनुष्य एक शासके ताबे रहता है उसके मानी है कि वह व्यक्तिगत स्वातंत्रयकी किमत देता है
- दिसम्बर ५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९શ્રદ્ધા બુદ્ધિથી પર છે, તેની વિરોધી નથી.
- નવેમ્બર ૫, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૬नानक कहते हैं ईश्वरका कानून है कि हम जगतमें एक कुटुंब हाउ और हरेक व्यक्तिको दूसरोंके लिये रहना है ।
- २४ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४बलिदान वही कर सकता जो शुद्ध है, निर्भय है, योग्य है ।
- सेवाग्राम शनि, २४ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१માણસ પોતાને કેવો છેતરે છે, એનો મને પ્રતિક્ષણ અનુભવ થાય છે.
- મે ૩૧, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૪સેવકની સાચી બૅંકઆમજનતા છે, જે ક્યારેય દેવાળું કાઢતી નથી.
- સોદપુર, જાન્યુઆરી ૪, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧जिंदगी गुलाबके समान मनाई जाती है । जिंदगीमें भी कांटा भरा है, इसलिये ।
- ७ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७Do or Die.
- Mahatma, vol. VI, pp.154-164, CWMG vol. LXXVI, pp. 384-396फिर नानक कहते हैं, जो देते हो वह तुमारा है जो रखते हो वह तुमारा नहीं है ।
- १० अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९६अपनी २ जगहपर सब उचित है, जगहके बाहर अनुचित ।
- सेवाग्राम सोम, १९ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९१प्रार्थनासे आंतरिक शक्ति बढ़ती है ।
- नई दिल्ली शनी, १४ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३Every minute that runs to waste is irrecoverable. Yet, knowing this, how much time we waste!
- May 20, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 433.अहंकाररूपी अंधकार से भी ज्यादा है ।
- २५ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९४धैर्यसे बहूत कम बनते हैं, अधैर्यसे बिगड़ते हैं ।
- सेवाग्राम सोम, १२ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०जिसकी आंख एक कहती है, जीभ दूसरी, हृदयमें तीसरी चीज है वह घर-फूटा है निकम्मा है ।
- पूना १७ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३किसी भी वस्तु तोडना आसन है सांधने में बड़ी कुशलता और सावधानी चाहीये ।
- सेवाग्राम शनि, १० अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०अगर तुझे चिढ़ना है तो दूसरोंकी गफलतसे क्यों, अपनी गफलतपर चिढ़ ।
- नई दिल्ली गुरु, २६ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९४We have no existence outside and apart from God.
- February 26, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.Life is not a bed of roses; it is full of thorns.
- June 9, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 457.The first service is latrine-cleaning.
- July 27, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 505.When all forsake you, God shall still be with you.
- April 26, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 453.In the code of the Satyagrahi there is no such thing as surrender to brute force.
- Prabhu, R. K, and U. R. Rao, eds., The Mind of Mahatma Gandhi(Ahmedabad: Navajivan Publishing House, 1967), p. 171.Mans joy knows no bounds when he obtains something beyond his hopes.
- April 21, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 437.A vow means unflinching determination? progress is impossible without inflexible determination.
- Gandhi, M.K., From Yeravda Mandir, translated from the original Gujarati by Valji Govindji Desai.अशक्यको शक्य बनाना जितना सरल है इतना ही मुश्केल अशक्यको शक्य बनाना है ।
- २० अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७He who is not disturbed by bad news will not be elated by good news.
- May 10, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 454.विकारी विचारसे भी बीमारीकि निशानी है इसलिये हम सब विकारी विचारसे बचते रहें ।
- २७ दिसम्बर, १९४४, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७८, पृ. ४२०લોકો તારી નિંદા કરે કે પ્રશસ્તિ, એમાં તારે શું? તું જેને ધર્મ મને છે, તેનો જ અમલ કર.
- સરાની કે ગોહાટી, જાન્યુઆરી ૧૦, ૧૯૪૬, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૧It is not the whistle that moves the train but the power harnessed in the steam.
- May 14, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.आत्मा जागती है तब सब दुःख दूर होता है ।
- उरुली ३० मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४It is as difficult to make the impossible possible, as it is easy to make the possible impossible.
- August 20, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 457.Reflection shows that heaven is here on earth, not in the sky above.
- March 7, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 412.Slipshod work is like half-baked bread, fit only to be thrown away.
- May 9, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 432.हम शारीरिक वस्तुमें फंसे रहें और आत्मानुभवकी आशा करें, वह आकाश पुष्पको पाने जैसा है ।
- ३० मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०ઈર્ષ્યા કરનારને ખાઈ જાય છે. જેની તે ઈર્ષ્યા કરે છે તેને કંઈ થતું નથી, કદાચ તે જાણતો પણ નથી.
- મે ૨૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૦, પા. ૪૫૪बगैर निस्वार्थताके निर्भयता कैसी?
- १६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०He who looks for faults in others cannot see his own.
- May 17, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.આપણો સૌથી મોટો દુશ્મન પરદેશી નથી, કે નથી કોઈ બીજું. આપણો શત્રુ આપણે પોતે જ એટલે આપણી વાસના જ છે.
- ડિસેમ્બર ૨૭, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૧૦रोज मरने से बेहतर है कि एक ही दफा मरना ।
- १६ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८When Reason and Faith are in conflict, it is better to prefer Faith.
- Saturday, August 17, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.Humility does not work, if it is a mere pretence; nor does simplicity.
- February 18, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.Even one word, if true, is enough. Untrue words, however many, are worth nothing.
- July 30, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.If God keeps you, what does it matter if men reject you?
- Saturday, October 5, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.मनुष्य नियमबध्ध रहता है, उससे ही उसे जो संतोष मिलता है वही उसका स्वास्थ्य और आयु बड़ाता है ।
- १७ मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५८न्यायमें जितनी उदारताकि जरुरत है इतनी ही न्यायकि उदारतामें है ।
- २३ अक्तूबर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५०३Faith that does not wane but ever waxes higher and turns into realization.
- December 3, 1945, CWMG, vol. LXXXII, p. 446.Accepting undesired service, which is not joyfully rendered, is a painful burden.
- July 21, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 504.What does it matter if people look upon us as dreamers?
- October 9, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.On the other hand, modesty and humility nourish man and make for his growth.
- May 19, 1945, CWMG, vol. LXXX, p. 433.I could not live for a single second without religion.
- "Speech at Panampet, Harijan, March 2, 1934", CWMG, vol. LVII, p. 199.शारीरिक दुर्बलता सच्ची दुर्बलता नहीं, मनकी दुर्बलता ही सच्ची दुर्बलता है
- सोदपुर जाते हुए, जनवरी ३, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१Pure love removes all weariness.
- Thursday, August 15, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 507.Only experience makes us realize how hard it is to attain the state of non-attachment.
- Sunday, September 22, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.दोष कबूल करने से ही दोष नहीं मिटता, दोष मिटाने के लिये जो शक्य है वह करना भी चाहीये ।
- मद्रास २५ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८What is in the mind must come out, sooner or later.
- May 23, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 455.Divine Power is a thing that nothing can withstand.
- July 5, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 459.અનાસક્ત કાર્ય શક્તિ આપનારું છે, કારણકે અનાસક્ત કાર્ય એ ભગવાનની ભક્તિ છે.
- જાન્યુઆરી ૧૯, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨જે માણસ અધ્યાત્મિક મનાતો હોય અને વ્યાધિગ્રસ્ત રહેતો હોય તો એના કંઈ દોષ હોય જ છે.
- માર્ચ ૨૨, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૧, પા. ૪૫૧जैसे पिण्डमें ब्रह्मांड है ऐसे देहातमें हिंदुस्तान है ।
- १२ जुलाई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६४संपूर्णता मनुष्यके लिये आदर्श ही है, शक्य नहीं है क्योंकि मनुष्य अपूर्ण ही बना है ।
- २२ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८Faith is the sun of life.
- Friday, October 4, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 511.Restlessness and impatience are two diseases and both shorten life.
- May 27, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 456.પ્રથમ કામ, પછી મળે તો કામ જેટલા દામ, આ થઇ પરમાત્માની સેવા. દામ પહેલાં માગો તો તે થઇ સેતાનની સેવા.
- જાન્યુઆરી ૨૬, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨એક સંપૂર્ણ પુરુષ અસત્યને દૂર કરી શકે છે, પછી ભલે ને અસત્ય કહેવાવાળા અનેક જણ હોય.
- ડિસેમ્બર ૧૦, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૮૨, પા. ૪૦૯When God is our Guide, we need worry about nothing.
- July 15, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 460.સાચું કાર્ય કદી નકામું નથી થતું. સાચું વચન અંતે કદી અપ્રિય નથી થતું.
- જાન્યુઆરી ૨૩, ૧૯૪૫, ગાંધીજીનો અક્ષરદેહ ગ્રંથ ૭૯, પા. ૪૪૨[जो] धीरज खोता है वह सत्य खोता है अहिंसा खोता है ।
- पंचगनी १६ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८क्या बात है कि आदमी सच कहने से और करने से डरता हैं, झूटसे नहीं?
- १० मई, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४५७जो मनुष्य क्रोधका कारण मिलते हुए भी क्रोध नहीं करता है उसीने ही क्रोधपर जय पाया है ।
- १९ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ५००How can a man who turns night into day be non-attached?
- June 19, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.अगर लोग हमको स्वप्नाव्स्थित समजें तो क्या हूआ?
- ९ अक्तूबर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९५सच्चा कार्य कभी निक्कमा नहीं होता, सच्चा वचन अंतमे कभी अप्रिय नहीं होता
- जनवरी २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६०Economics which departs from or is opposed to ethics is no good and should be renounced.
- January 12, 1946, CWMG, vol. LXXXII, p. 450.Man rests in the jaws of Death. He is said to be dead when the jaws close.
- June 29, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 459.He whose eye says one thing, his tongue another, and his heart yet another, is a worthless fellow.
- March 17, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 413.गुस्सा किसपर करना? अपनेपर? यह तो रोज करो । दिसरोंपर? यह तो करने का कारण ही क्या?
- ३० अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८जो विरोधीकी दयाकी अपेक्षा करती है सो अहिंसा नहीं है
- सोदपुर जनवरी १४, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२अनासक्तिकि सच्ची कसौटी तब होती है जब किसी कामके लिये हमारे में अशक्तिका पूरा संभव पैदा होता है ।
- १५ जून, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८०, पृ. ४६१The darkness of egoism is more impenetrable than darkness itself.
- July 25, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 454.If we dwell on evil thoughts, they do not disappear; they are likely to become our companions. Dhyayato vishayan.”
- Monday, September 30, 1946, CWMG, vol. LXXXV, p. 510.Mahadev's life is an unceasing poem of devotion.
- Desai, Narayan, Agni Kund Ma Ugalu Gulab, Ahmedabad:Mahadev Desai Centenary Committee, 1992, p. 8.He who has neither peace nor determination, how can he have realization?
- February 15, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 410.भिलों [भीलों] की सच्ची सेवा है कि उनको निर्भय करें और उनकी निराशा मिटावें ।
- नई दिल्ली बुध, २८ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२Intuition is lame if it is not supported by reason.
- June 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIV, p. 458.It is sin to regard anyone as helpless who has God for his support.
- January 29, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 408.सिवाय मनकी स्थिरताके दर्शन हो ही नहीं सकता है ।
- मद्रास २८ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८In fact there should be harmony in life. The melody will pervade all activities and behaviour.
- February 23, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 411.धर्म के लिये मरना अच्य्ह्चा है, धर्मधताके लिये न जीना न म[र]ना ।
- नई दिल्ली शुक्र, १३ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३I am in the world feeling my way to light "amid the encircling gloom."
- "Not Even Half-Mast, Young India, December 4, 1924", CWMG, vol. XXV, p. 390.Who can describe the joy that lies in finding refuge in God?
- March 25, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.आदमीको अपनेको धोका देने की शक्ति इतनी है कि वह दूसरोंको धोका देने की शक्तिसे बहूत अधिक है इस बातका
- जनवरी १५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ७९, पृ. ४६३त्याज्य वस्तु मुफ्त मिले तो भी न लेना कर्तव्य है
- नवेम्बर १२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६He who is truly clean within, cannot remain unclean without.
- January 22, 1945, CWMG, vol. LXXIX, p. 427.The power of a true word is such that it leads one from selfishness to selflessness.
- July 31, 1945, CWMG, vol. LXXXI, p. 455.He who fears, fails.
- March 31, 1946, CWMG, vol. LXXXIII, p. 414.भगवानसे शरणमें जो सुख रहता है इसका वर्णन कौन कर सकता है?
- उरुली २५ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४जिसको ईश्वरकि हस्तिके लिये शंका है उसे अपनी हस्तिके लिये [भी] शंका होनी चाहिये?
- ८ सितम्बर, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९९अगर आत्मा है तो परमात्मा है ही ।
- २७ अगस्त, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८१, पृ. ४९७1956年,在印度政府的CWMG项目指引下,关于Gandhiji作品的真实文献已经完成得严谨细致了。